एक बार सभी नदियों ने एक सभा बुलाई।
सभी का यह कहना था कि उनको एक लंबा रास्ता तय करने के बाद समुद्र में मिल जाना पड़ता है।
“इतनी दूर चलने के बाद हमें समुद्र में मिल जाना होता है। फिर हम उसमें खो जाती हें।' एक नदी बोली।
'फिर हमें कोई नहीं पहचानता। हम समुद्र का हिस्सा बन जाती हैं।! दूसरी ने कहा।
“जब हम पहाडों से निकलती हैं तो हमारा पानी कितना मीठा होता है। पीने के लिए एकदम अच्छा, साफ-सुथरा। लेकिन समुद्र में मिलकर हमारा पानी बिलकुल खारा हो जाता हे।' तीसरी बोली।
'हाँ, इतना नमक उसमें मिल जाता है कि कोई उसे पीने की बात सोच भी नहीं सकता।' चौथी ने कहा।
'यह तो अन्याय है।' बाकी सभी नदियाँ एक साथ बोलीं। 'हमें इसे रोकना चाहिए।' सभी ने तय किया।
जब यह बात समुद्र को पता चली तो उसे बहुत दुख हुआ। उसने कहा-
'मैं तो समझता था कि तुम सभी मुझमें मिलकर एक हो जाना चाहती हो। मैं भी हमेशा एक पिता की तरह तुम्हें अपने अंदर छिपा लेने को तैयार रहता हूँ।
लेकिन अगर तुम्हें यह पसंद नहीं तो आज से तुम यहाँ मत आना। तुम जिस रास्ते पर चाहो जा सकती हो।'
समुद्र ने नदियों को एक बात और समझाई, “मुझमें मिलने के बाद लोग तुम्हें तुम्हारे नाम से नहीं जानते, ये सच है।
लेकिन मेरे अंदर रहने वाले असंख्य जीव-जंतुओं और पेड्-पौधों को तुम्हारे पानी से जीवन मिलता है। फिर भी अगर तुम चाहो तो आज से अपने रास्ते पर जा सकती हो।'
नदियों को अपनी गलती का आभास हुआ। उन्होंने समुद्र से कहा-
“हम बस अपने ही बारे में सोच रही थीं। अब हमें अपनी गलती महसूस हो गई है। हम भाग्यशाली हैं कि साथ मिलकर हम एक विशाल समुद्र बन जाती हैं।'
और हमेशा की तरह आज भी सभी नदियाँ खुशी-खुशी समुद्र में जाकर मिल जाती हें, ओऔरों को जीवन देने के लिए।