हाथी की सूँड कहाँ से आई ?

नाना नानी की कहानियाँ

ये कहानी उस समय की है, जब हाथी की सूँड नहीं होती थी।

कहते हैं कि उसकी भी एक छोटी नाक थी, बाकी जानवरों की तरह। लेकिन हाथी के एक छोटे बच्चे ने सब कुछ बदल दिया।

हुआ यूँ कि जंगल में हाथी का एक छोटा बच्चा अपनी माँ के साथ रहता था।

वह बहुत ही जिज्ञासु था। वह इतने प्रश्न पूछता था कि कभी-कभी उसकी माँ परेशान होकर कहती थी, 'छोटू जाओ, थोडा घूम आओ।'

वह शेर से पूछता था, 'आपकी आवाज इतनी डरावनी क्‍यों है ?

वह जिराफ से पूछता, 'तुम्हारी गर्दन इतनी लंबी क्‍यों हो गई ?'

वह खरगोश से पूछता, तुम्हारा फर इतना मुलायम केसे हे ?'

वह गैंडे से पूछता, 'नाक पर ये सींग तुमने कैसे उगाया ?'

इसी तरह सबसे प्रश्न पूछकर अपनी जिज्ञासा को शांत करने में उसे बड़ा मजा आता था।

एक बार उसके मन में एक अजीब जिज्ञासा हुई।

उसने किसी से मगरमच्छ नाम के जानवर का नाम सुन लिया।

वह अपनी माँ के पास गया। अब तक उसके मन में बहुत-से प्रश्न उठने लगे थे।

उसने एक के बाद एक प्रश्न पूछने शुरू कर दिए।

'माँ मगरमच्छ कहाँ रहता है ?'

'पानी में।' माँ बोली।

'क्यों, हमारी तरह जमीन पर क्‍यों नहीं ?' उसने पूछा।

'क्योंकि पानी ही उसका घर होता है। हाँ, कभी-कभी वह जमीन पर भी रहता है।' माँ ने कहा।

“उसके कितने पैर होते हैं ?'

'चार।'

'क्या वह चीते जितना तेज भागता है ?'

'नहीं छोटू, वह तो तेज चल भी नहीं सकता।'

“तो फिर वह अपने खाने के लिए पेड-पौधे ढूँढ़ने कैसे जाता होगा ? वह भी हमारी तरह पेड़-पौधे ही खाता है न ?' उसने पूछा।

“नहीं छोटू, वह यह सब नहीं खाता।' माँ बोली।

'तो फिर वह क्‍या खाता है ? बोलो ना माँ, मगरमच्छ कया खाता है ?

अब माँ झुँसला गई और बोली, 'छोटू जाओ, थोड़ा घूम आओ। बेठे-बैठे बहुत प्रश्न पूछते हो।'

बस वह सभी जानवरों से पूछने लगा, “मगरमच्छ क्‍या खाते हैं?' ' लेकिन किसी को भी इस प्रश्न का उत्तर पता नहीं था।

तब उसने मन में सोचा, कोई बात नहीं, माँ ने बोला है कि मगरमच्छ पानी में रहता है।

मैं नदी के किनारे जाकर मगरमच्छ से खुद पूछ लेता हूँ कि वह क्‍या खाता है।

बस, वह चल दिया नदी की ओर। नदी के किनारे पहुँचा तो गीली मिट्टी में कुछ हिलता हुआ नजर आया। वह पास पहुँचा तो देखा

कि एक लंबी-सी चीज मिट्टी में सनी हुई आराम से पड़ी है। उस अजीब चीज ने अपनी आँखें खोलीं। छोटू ने पूछा, ' भैया, ये मगरमच्छ कहाँ मिलेगा ?'

उस अजीब चीज ने अपना लंबा-सा मुँह खोला और बोला, 'मैं ही मगरमच्छ हूँ।

' अरे वाह, आखिर मैंने आपको ढूँढ़ निकाला।' छोटू खुश होकर बोला-

'मगरमच्छ भैया, आप मुझे बताइए ना कि आप कया खाते हैं ?'

'थोड़ा पास आओ. मैं तुम्हारे कान में बताता हूँ।' मगरमच्छ बोला।

छोटू उत्सुकता में अपना सिर मगरमच्छ के पास ले गया। मगरमच्छ ने तुरंत उसको नाक पकड़ ली। छोटू घबरा गया।

'छोड़ो-छोड़ो मुझे।' वह दर्द के कारण चिल्लाया। लेकिन मगरमच्छ उसे पानी में खींचने लगा।

छोटू ने बहुत जोर लगाया और अपने आपको पीछे की ओर खींचने लगा। उधर मगरमच्छ भी उसे आगे खींच रहा था।

इस खींचतान में उसकी नाक खिंचकर लंबी होने लगी।

नाक जितना ही दोनों ओर खिंचती थी, उतनी ही लंबी होती जाती थी।

आखिर छोटू ने एक आखिरी बार जोर लगाया और मगरमच्छ से खुद को छुड़ा लिया।

लेकिन ये क्या ?

उसकी नाक को क्या हुआ ? उसे बहुत दर्द हो रहा था। वह जल्दी से घर की ओर भागा।

माँ ने उसकी लंबी नाक पर केले के पत्ते बाँधे तो दर्द थोड़ा कम हुआ।

उन्होंने सोचा कि घाव भर जाएगा तो नाक सिकुड़कर ठीक हो जाएगी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ।

और इस तरह एक छोटे हाथी की उत्सुकता के कारण हाथी की नाक एक लंबी सूँड़ बन गई, हमेशा के लिए।