अच्छा व्यवहार

नाना नानी की कहानियाँ

बहुत पुराने समय की बात है।

जब हमारे देश में बहुत-से राजाओं का राज्य था।

उन्हीं में से एक राजा थे राजा विनीतसिंह। वे अपने नाम के अनुसार बहुत विनम्र और विनीत थे।

अपने राजा होने का घमंड उन्हें बिलकुल भी नहीं था।

उनके रथ का सारथी था मयंक। मयंक को अपने आप पर बहुत अभिमान था, क्‍योंकि वह महाराज का सारथी था।

राजा के साथ हुए अपने अनुभवों को वह बढ़ा-चढ़ाकर सबको बताता था।

उसको पत्नी को उसकी यह आदत बिलकुल पसंद नहीं थी। वह मयंक को समझाना चाहती थी, पर वह कुछ भी सुनने को तैयार नहीं होता था।

एक दिन महाराज पूरे शहर के भ्रमण पर निकले। वे सभी से मिलकर उनके सुख और दुख बाँटना चाहते थे।

सभी गलियों से होते हुए उनका रथ उस इलाके में पहुँचा, जहाँ मयंक का घर था। जब रथ वहाँ

से गुजर रहा था तो मयंक घमंड से तनकर बैठ गया। उसके पडोसी मुड-मुड़कर देख रहे थे। उसकी पत्नी ने सुना तो वह भी बाहर आई, लेकिन मयंक ने उसकी ओर देखा तक नहीं। महाराज सभी को देखकर मुस्कुरा रहे थे और हाथ हिला रहे थे। सब उनको देखकर झुककर नमस्कार करते थे।

शाम को जब मयंक घर वापिस आया तो उसकी पत्नी ने उससे ठीक तरह से बात नहीं की। मयंक ने उससे कारण पूछा तो बोली-

“जब तुम रथ चलाकर ले जा रहे थे, तब महाराज को देखकर सब सिर झुकाकर प्रणाम कर रहे थे।

जब महाराज भी हँसकर जवाब दे रहे थे। और तुम इतने तनकर बैठे थे कि कोई तुम्हारी ओर देखना भी पसंद नहीं कर रहा था।

किसी को देखकर मुस्कुराने से या अच्छी तरह बात करने से अपना मान कम नहीं होता बल्कि दूसरे लोग हमको ज्यादा सम्मान देते हैं।

तुम अपने घमंड के कारण यह बात नहीं समझ पाओगे।

सहजता से चेहरा भी ज्यादा रूपवान लगता है-जैसे कि महाराज का चेहंरा लगता है।'

मयंक को पत्नी की बात सच लगी। उसने इस बारे में गंभीरता से सोचा और अपने व्यवहार को बदल दिया।

अब वह सभी से ज्यादा सहजता से बात करने लगा। उसके पड़ोसियों ने, मित्रों ने और महाराज ने भी इस परिवर्तन को महसूस किया।

फिर एक दिन उन्होंने मयंक को बुलाया और बोले-

“मयंक, मैं पहले से जानता हूँ कि तुम बहुत गुणी हो। लेकिन तुम्हारा अभिमान तुम्हें सबसे दूर रखता था।

अब तुम पहले जैसे नहीं रहे हो। तुमने खुद को बदल लिया है। मैं बहुत खुश हूँ।

मैं चाहता हूँ कि तुम दरबार में प्रजा-अधिकारी का काम सम्भालो।

इस काम में प्रजा के साथ घुल-मिलकर, प्यार से बात करने की जरूरत पडेगी। और में जानता हूँ कि तुम ऐसा कर सकते हो।'

मयंक की खुशी का ठिकाना नहीं था।

उसके अच्छे व्यवहार ने उसे सबकी नजरों में अच्छा बना दिया था।