दुष्ट की लाचारी भी पडे भारी

नाना नानी की कहानियाँ

एक लालची भेडिया एक जंगल में रहता था।

वह बहुत ही चालाक था। किसी के साथ बाँटकर खाना उसे बहुत बुरा लगता था।

सबके साथ चालाकी से अपना काम निकाल लेना उसे बहुत पसंद था। इसीलिए उसके साथ कोई भी बात करना नहीं चाहता था।

एक बार वह खाना खा रहा था। खाते समय एक टुकड़ा उसके गले में अटक गया।

उसने खाँसकर उस टुकड़े को निकालने कौ बहुत कोशिश की।

जब टुकड़ा बाहर नहीं निकला तो वह दूसरे जानवरों के पास गया। उसने इशारा करके जानवरों को समझाने की कोशिश की। लेकिन सब जानते थे कि इसमें भी उसका कोई स्वार्थ होगा। इसीलिए किसी ने उसकी मदद नहीं की।

वह हारकर नदी के किनारे बैठ गया। टुकड़ा इतनी बुरी तरह से फँसा था कि उसे अब साँस लेने में भी मुश्किल हो रही थी।

एक बगुले ने उसकी यह हालत देखी तो उसे दया आ गई। वह भेडिए से बोला, 'अगर तुम मुझसे वादा करो कि मुझे इस मदद के बदले में कुछ दोगे तो मैं कोशिश कर सकता हूँ।'

भेडिए ने झट-से सिर हिलाकर हाँ कर दी।

बगुला बदले में भेडिये से यह वादा लेना चाहता था कि वह अब दूसरों को परेशान नहीं करेगा और एक अच्छे भेडिये की तरह रहेगा।

उसने भेडिये से कहा, 'लेट जाओ और अपना मुँह पूरा खोल दो।'

फिर उसने भेडिये के मुँह में सावधानी से अपनी गर्दन डाली और चोंच से पकड़कर धीरे से टुकड़ा बाहर निकाल दिया।

भेडिये को एकदम आराम मिल गया।

तब बगुले ने कहा, “अब इनाम के तौर पर मैं यह चाहता हूँ कि लेकिन इससे पहले कि वह अपनी बात पूरी कर पाता, भेडिया बड़े ही चालाकी भरे अंदाज में हँसा और बोला, ' अरे बगुले, एक भेडिये के मुँह में गर्दन डालकर सही-सलामत बाहर निकाल पाना, यही अपने-आपमें एक इनाम है।

समझे, जाओ...।'

बगुले को यह सोचकर बहुत पछतावा हुआ कि उसने क्‍यों ऐसे दुष्ट भेडिये की मदद की।

उसने निश्चय किया कि फिर कभी उसके पास भी नहीं जाएगा।