एक गाँव में एक साधु रहता था।
वह बस नाम से ही साधु था। असल में वह भक्ति की जगह पैसे की ओर ज्यादा ध्यान देता था।
पहले तो सब उसका आदर करते थे। लेकिन जब उन्हें साधु की असलियत का पता चला तो वे उसको सबक सिखाने का तरीका ढूँढ़ने लगे।
उसी गाँव में एक बुद्धिमान व्यक्ति कबीर रहता था। कबीर ने निश्चय किया कि वह साधु के पास जाकर उसे उसकी गलती के बारे में बताएगा।
एक दिन सुबह-सुबह तैयार होकर कबीर साधु बाबा के पास पहुँचा।
उसने बाबा के चरणों में सिर रखकर उन्हें प्रणाम किया और कुछ फल उन्हें भेंट किए।
साधु ने जब देखा कि कबीर ने दक्षिणा में पैसे नहीं चढ़ाए हैं, बस कुछ फल ले आया है तो उन्होंने उसकी ओर ठीक से
देखा तक नहीं। बस हाथ ऊपर उठाया और अपने काम में व्यस्त हो गए।तभी उनका एक सेवक वहाँ आया और बोला, 'बाबा जमींदार साहब का बेटा आपके दर्शन के लिए आया है।'
बाबा तुरंत उठकर दरवाजे की ओर तेजी से चल पडे।
जमींदार के बेटे को उन्होंने प्रेम से अंदर बुलाया और आशीर्वाद देकर गले से लगाया।
जमींदार के बेटे ने दक्षिणा के रूप में बहुत-से उपहार और पैसे बाबा के चरणों में रख दिए।
कबीर को यह भेदभाव देखकर अच्छा नहीं लगा। उसने बाबा से पूछा, “बाबा, आपने मुझे अच्छी तरह आशीर्वाद भी नहीं दिया और जमींदार के बेटे के स्वागत के लिए खुद गए।
ऐसा अंतर क्यों ?
तब बाबा ने कहा, पुत्र, में जानता हूँ तुम्हारे मन में बहुत प्रेम और श्रद्धा है। में जानता हूँ कि तुम्हारे साथ ऊपरी दिखावे की जरूरत नहीं है। तुम मेरे मन की बात समझ सकते हो।
मैंने मन में ही तुम्हें आशीर्वाद दे दिया है। जमींदार के पुत्र के साथ मेरा व्यवहार तो मात्र दिखावा था।'
कबीर सच में साधु के मन की बात समझ गया। बिना कुछ कहे वह वापिस आ गया।
उस दिन शाम को जब साधु बाबा भोजन के लिए भिक्षा माँगने आए तो सभी ने आदर से उन्हें प्रणाम किया लेकिन भिक्षा किसी ने नहीं दी।
साधु बाबा जब खाली हाथ लौट रहे थे, तब सब गाँव वाले इकट्ठे हुए और प्रेम से साधु बाबा से बोले, “बाबा, हम आपका बहुत सम्मान करते हैं, लेकिन दिखावा नहीं करते।
आप भी यही कहते हैं ना! हमने जब खाना बनाया था तो एक भाग आपके लिए रखा था, लेकिन फिर एक गरीब भिखारी को खिला दिया।
हाँ हमारे मन में सिर्फ आप ही थे। हमें विश्वास है कि आप हमारे मन की बात समझेंगे।'
उस रात बाबा को भूखे पेट सोना पड़ा। लेकिन वे दिखावे का
सही अर्थ समझ गए।