जब लोमडी ने तोड़ा जंगल का नियम

नाना नानी की कहानियाँ

एक बहुत बड़ा जंगल था, जिसे जानवरों ने कई इलाकों में बाँटा हुआ था।

हर इलाके में बहुत-से जानवर आपसी प्यार से रहते थे।

जंगल का नियम था कि कोई भी जानवर अपने ही इलाके के जानवर का शिकार नहीं करेगा।

सभी जानवर इस नियम का पालन करते थे।

जंगल के एक इलाके में एक लोमड़ी और उसकी बूढी माँ रहती थी। वे दोनों बहुत आलसी थीं।

बूढ़ी लोमड़ी तो अपनी उम्र के कारण कमजोर हो गई थी, इसलिए शिकार करने नहीं जा पाती थी।

लेकिन उसकी बेटी भी आलस के कारण कोशिश करती थी कि घर बेठे ही कुछ खाने को मिल जाए।

इन लोमडियों के घर से कुछ ही दूरी पर दो खरगोश रहते थे।

वे दोनों साथ मिलकर मेहनत करते थे। खाना इकट्ठा करके बाँटकर खाते थे। दोनों बहुत समझदार थे।

एक दिन लोमडियाँ बहुत देर से सोकर उठीं।

सूरज तेजी से चमक रहा था। शेष जानवर शिकार से लौट आए थे।

लेकिन लोमडियाँ अभी तक आलस्य में लेटी हुई थीं। जब भूख लगी तो छोटी लोमडी ने बाहर निकलकर देखा।

“हे भगवान, कितनी तेज धूप है। काश! आज शिकार किए बिना ही खाना मिल जाता।' वह बोली ।

तभी उसे उन दो खरगोशों की याद आई। वह अपनी माँ से बोली, 'माँ तुम खाने की तैयारी करो, मैं खाना लेकर अभी आती हूँ।'

लोमडी दबे पाँव खरगोशों के घर के सामने पहुँची। वह पास ही एक झाडी में छिपकर बैठ गई।

जैसे ही एक खरगोश बाहर आया, उसने दबोचकर उसे उठा लिया।

वह अपने साथ एक बोरी लेकर आई थी। उसने खरगोश को जल्दी से बोरी में डाला और लेकर घर की ओर चल दी।

दूसरा खरगोश घर के अंदर था। जब उसने अपने दोस्त की आवाज सुनी तो दौड़कर बाहर आया।

लेकिन तब तक लोमडी उसके दोस्त को पकड़ चुकी थी।

उसे अपने दोस्त को दुष्ट लोमड़ी के चंगुल से बचाना था। वह दौड़कर आया और लोमडी के पैरों में उछल-कूद करने लगा।

पहले लोमडी को गुदगुदी हुई, फिर गुस्सा आया। वह चिल्लाई..

ए मूर्ख खरगोश क्‍या कर रहा है? आ मैं तुझे भी पकड़ लेती हूं।

इस सारी गड्बड़ी में बोरा उसके हाथ से छूटकर नीचे गिर गया। अंदर बंद खरगोश तुरंत कैद से छूटकर बाहर दौड़ गया।

इधर लोमडी दूसरे खरगोश के पीछे भाग रही थी। खरगोश बडा ही समझदार था। वह लोमड़ी को उस ओर ले गया, जहाँ एक बड़ा-सा

गड्ढा था। पीछा करते-करते लोमड़ी को बहुत गुस्सा आ रहा था। गुस्से में वह भूल गई कि वह गड्ढे की ओर जा रही हे।

परिणाम यह हुआ कि खरगोश तो किनारे से निकल गया, पर लोमडी गड्ढे में गिरकर मर गई।

उसकी माँ तो शिकार कर ही नहीं सकती थी। वह अपनी बेटी के इंतजार में बैठी रही।

जब उसे पता चला कि उसकी बेटी के साथ क्‍या हुआ तो उसने निश्चय किया कि वह अब कभी जंगल के नियमों को नहीं तोड़ेगी।

उसमें आए परिवर्तन को देखकर उसके पड़ोसी जानवरों ने उसकी मदद करने का निश्चय किया।

वह उसे लोमडी अम्मा कहकर बुलाते थे और उसके साथ खाना बाँटकर खाते थे।

' इस तरह एक दुष्ट लोमडी एक अच्छी पड़ोसी बन गई।