ये उस समय की बात है, जब संसार में चंद्रमा नहीं था।
बस सूरज था, जो हमेशा तेजी से चमकता रहता था।
इसी कारण सभी लोग हमेशा काम करते रहते थे।
उन्हें समय का या रात-दिन का कोई ज्ञान ही नहीं था।
वे उस समय तक काम करते थे जब तक थककर गिर नहीं जाते थे।
आराम करने का कोई निश्चित समय नहीं था।
इसलिए जैसे ही थके हुए लोगों में थोड़ी शक्ति वापिस आती थी, वे फिर काम करने लगते थे। जीवन ऐसे ही चल रहा था।
एक दिन संसार को बनाने वाले भगवान ब्रह्माजी धरती का निरीक्षण करने आए।
उन्हें सब मेहनती लोगों को देखकर बड़ी खुशी हुई। खेतों में फसल लहलहा रही थी। नदियाँ बह रही थीं। पेड-पौधे हरे-भरे थे और फल-फूलों से लदे हुए थे।
उन्होंने एक व्यक्ति से पूछा, 'ये फसल तुमने कब बोई थी?! 'आज' वह बोला।
'इसको कब काटोगे ?
' उन्होंने पूछा।
“आज ही।' उसने कहा।
वे थोड़ा आगे गए तो एक महिला मिली।
वह अपने दो पुत्रों के : साथ बेठी थी। दोनों पुत्रों में कई वर्ष का अंतर था।
ब्रह्माजी ने बड़े पुत्र की ओर इशारा करके पूछा - ' तुम्हारा जन्म कब हुआ था ?
'आज' वह बोला। फिर उन्होंने छोटे पुत्र को ओर इशारा करके महिला से पूछा- “और इसका जन्म कब हुआ ?'
'आज ही! महिला बोली, 'यहाँ सब कुछ आज ही हुआ हे, क्योंकि यहाँ बस 'आज' ही है।'
तब ब्रह्माजी की समझ में आया कि धरती के लोगों को समय का कोई ज्ञान ही नहीं है।
वे दिन-रात के बारे में कुछ जानते ही नहीं। तब उन्होंने सूरज से कहा कि वह एक निश्चित समय पर छिप जाया करे, जिससे कि धरती के लोग काम करना बंद करके आराम कर सकें सूरज ने ऐसा ही किया।
जब अचानक सूरज छिप गया तो चारों ओर घना अँधेरा हो गया। लोग घबराकर इधर-उधर भागने लगे।
उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि यह क्या हुआ।
कुछ लोग गिर पडे। कुछ को चोट लग गई। लोगों के हाथों से चीजें गिर पड़ीं और टूट गई।
जब बार-बार सूरज छिपने लगा तो एक बुजुर्ग व्यक्ति ने सुझाव । रखा कि जैसे ही अँधेरा हो, सभी लोग लेट जाएँ और आराम करें। जब सूरज दोबारा निकले तब फिर से काम करना शुरू करें।
उनकी बात सबने मानी और अब सबको आराम करने का समय मिलने लगा। वे ज्यादा स्वस्थ रहने लगे।
ब्रह्मजी फिर उनसे मिलने आए और पूछा, "तुमको दिन और रात खाना नहीं मिलता।
सभी उससे दूर-दूर रहते थे। और इसीलिए उसका नाम भाग्यवान से बदलकर अभागू पड़ गया था।
राजा परमवीर ने भी अभागू के बारे में बहुत सुना था।
उनको इच्छा हुई कि वे स्वयं इस बात की जाँच करें। इसलिए उन्होंने अभागू को राजमहल में बुलाया और रात को वहीं रोक लिया।
सुबह जब बे उठे तो आँखें खोलने से पहले अभागू को उनके कमरे में भेज दिया गया। राजा ने आँखें खोलकर सबसे पहले अभागू का चेहरा देखा।
फिर वे अपने राज-काज में व्यस्त हो गए।
दोपहर को जब वे खाना खाने बेठे तो. कहीं से एक मक्खी उड़ती हुई आई और खाने में गिर गई। राजा परमवीर को बहुत क्रोध आया।
उन्होंने खाना दोबारा बनाने का आदेश दिया।
लेकिन जब तक दोबारा भोजन तैयार हुआ, उनकी भूख ही मर गई। इसलिए वे खाना खाए बिना ही चले गए।
उन्हें विश्वास हो गया कि इसका कारण अभागू ही था। इसलिए उन्होंने अभागू को मृत्युदंड दे दिया।
अभागू बेचारा सच में अभागा हो गया था। जब उसे ले जाया जा रहा था, तब रास्ते में उसको कुशाग्रबुद्धि मिले।
अभागू ने उन्हें पूरी घटना सुनाई। तब कुशाग्रबुद्धि ने उसके कान में कुछ कहा।
मृत्युदंड से पहले अभागू से पूछा गया कि उसकी अंतिम इच्छा क्या है। तब उसने कहा, “मैं मरने से पहले महाराज से कुछ कहना चाहता हूँ।'
उसकी अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए उसे इस बात की अनुमति दे दी गई।
तब उसने राजा से कहा, 'महाराज! सुबह उठकर आपने मेरा चेहरा देखा तो आपको भोजन नहीं मिला।
लेकिन मैंने आपका चेहरा देखा तो मुझे मृत्युदंड मिल गया। अब आप ही बताएँ कि ज्यादा अशुभ कौन है ? मैं या आप ?'
महाराज उसकी बात सुनकर चौंक गए।
उन्हें उसकी बुद्धिमानी पर गर्व हुआ और उन्होंने ईनाम देकर उसे अपने घर जाने की अनुमति दे दी।