सच्ची शिक्षा

नाना नानी की कहानियाँ

प्रवीण नाम का एक छोटा लड़का था।

उसे तरह-तरह की युद्ध-कलाएँ सीखने का बहुत शौक था।

उसने एक योद्धा का बहुत नाम सुना था। लोग कहते थे कि उनके जेसा तलवार चलाने वाला आज तक नहीं हुआ।

प्रवीण के मन में इच्छा हुई कि उनके पास जाकर तलवार चलाने की शिक्षा ली जाए। वह उस शहर की ओर चल पडा, जहाँ वे रहते थे।

प्रवीण ने योद्धा के पास जाकर विनती की कि वे उसे शिष्य बना लें। योद्धा ने उसकी प्रार्थना स्वीकार कर ली।

उन्होंने प्रवीण से कहा कि तलवारबाजी सीखने के कुछ नियम हैं।

उसे उन नियमों का पालन करना होगा।

प्रवीण ने स्वीकार कर लिया। अगले दिन से योद्धा ने उसे समझा दिया कि उसे घर क॑ क्या-क्या काम करने होंगे ?

प्रवीण सुबह से शाम तक सफाई, झाड़-पोंछ, कपडे धोना, बर्तन साफ करना यही सब करता रहता था।

ऐसा करते हुए काफी दिन बीत गए। लेकिन योद्धा ने तलवारबाजी सिखाने का नाम तक नहीं लिया।

धीरे-धीरे प्रवीण का मन उखडने लगा।

हर दिन वह इंतजार करटा था कि शायद्‌ आज कुछ शुरुआत होगी, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ तो वह योद्धा के पास गया और बोला, ' श्रीमान, मेरी शिक्षा कब आरंभ होगी ?' उसके गुरु ने कुछ नहीं कहा और चले गए।

प्रवीण को बहुत अजीब लगा।

अगले दिन जब वह कपडे धो रहा था तो किसी ने आकर जोर से उसको पीठ पर लकड़ी से वार किया।

उसने मुड़कर देखा तो उसके गुरु लकड़ी की एक तलवार लेकर जल्दी से दूसरी ओर जा रहे थे।

उसे बड़ा आश्चर्य हुआ कि उन्होंने ऐसा क्‍यों किया ?

उसके बाद ऐसी घटनाएँ अक्सर होने लगीं। प्रवीण अब किसी भी प्रहार के लिए तैयार रहने लगा। वह हरदम सतक रहने लगा।

यहाँ तक कि सोते समय भी वह आसपास का ध्यान रखने लगा। धीरे-धीरे उसने अपना बचाव करना सीख लिया।

एक दिन गुरुजी तन्‍्मयता से कुछ लिखने में व्यस्त थे। प्रवीण के मन में एक अजीब खयाल आया।

वह गुरु पर वार करने के लिए उनकी ओर दबे पाँव आया। वह देखना चाहता था कि वे किस प्रकार से अपना बचाव करते हैं।

उसने तलवार उठाई और जोर का एक प्रहार किया। लेकिन उसके गुरु हर पल इस तरह के प्रहार से बचने के लिए तैयार थे। उनके पास एक ढाल रखी थी।

उन्होंने तुरं! वह ढाल उठाई और अपने आपको प्रहार से बचा लिया।

प्रवीण आश्चर्य से देखता रह गया। उसने अपने बचाव की एक नई विधि सीख ली थी।

उसने गुरु से कहा, ' श्रीमान मैं समझ गया हूँ कि मेरी शिक्षा आरंभ हो चुकी है।

' योद्धा ने कहा, 'हाँ पुत्र, अच्छा तलवारबाज होने का मतलब यह नहीं है कि आप अपने प्रतिद्वंद्वी से अच्छी तलवार घुमाएँ बल्कि सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण है- आत्मरक्षा यानि कि किसी भी प्रहार से अपनी रक्षा करना।

हमें सामने वाले के विचारों को पढ़ना आना चाहिए।

प्रवीण ने काफी दिनों तक मन लगाकर शिक्षा ग्रहण की और तलवारबाजी में प्रवीण होकर अपने देश की सेवा की।