दो मित्र थे यश और सौरभ।
दोनों ने मिलकर कपडे का व्यापार शुरू किया। उनकी मेहनत और लगन से व्यापार अच्छा चलने लगा। यश ज्यादातर बाहर का काम देखता था।
सौरभ सारा हिसाब-किताब रखता था। महीने में एक बार दोनों बैठकर अपने अनुभव एक-दूसरे को सुनाते थे।
धीरे-धीरे उन्हें लाभ होने लगा और उनका जीवन आराम से बीतने लगा।
एक बार यश व्यापार के सिलसिले में आसाम गया। वहाँ के चाय के बागान देखकर वह बहुत प्रभावित हुआ।
वह वहाँ चाय के कई व्यापारियों से भी मिला।
उसे लगा कि चाय के इस व्यापार में ज्यादा लाभ मिलता है। उसने मन ही मन निर्णय लिया कि उन्हें यह व्यापार शुरू करना चाहिए।
वापिस आकर वह सौरभ से बोला-
'सौरभ, अब हमारा कपडे का व्यापार काफी बढ़ गया है। हमें अपने काम को दूसरी दिशा में भी फैलाना चाहिए। इस व्यापार से थोडा पैसा निकालकर क्यों न हम चाय का व्यापार शुरू करें।'
सौरभ को यह सुझाव ज्यादा अच्छा नहीं लगा। उसने कहा, 'लेकिन यश, कपडे के व्यापार और चाय के व्यापार में कोई ताल-मेल नहीं है। दोनों अलग तरह की चीजें हैं। दोनों के खरीददार अलग हैं। मुझे नहीं लगता यह एक अच्छा निर्णय होगा।'
“कुछ भी नया काम शुरू करने में मुश्किलें तो होती ही हैं सौरभ। लेकिन तुम चाय के व्यापार में होने वाले मुनाफे को देखो। हम मेहनत करेंगे तो सब ठीक हो जाएगा।' यश ने जोर देकर कहा।
“यदि हमें अपना काम बढ़ाना ही है तो हम कपड़ा-व्यापार के साथ चलने वाली कोई चीज क्यों न शुरू करें, जेसे कि चादरें, या फिर रेडीमेड गारमेंट्स।'
लेकिन यश नहीं माना, उसकी जिद के आगे सौरभ को आखिर झुकना ही पडा।
उन्होंने काफी पैसा चाय के व्यापार में लगा दिया और फिर वही हुआ, जिसका डर था।
काम नहीं चला, उन्हें भारी नुकसान हुआ। सौरभ की बात सच हुई। दोनों दोस्तों के बीच झगड़ा हुआ और दोनों ने कपड़े के व्यापार का बाँटवारा कर लिया।
अलग होने के बाद दोनों को ही मुश्किलों का सामना करना पड़ा। पहले काम बाँटकर हो जाता था। अब बाहर की भागदौड़ और फिर हिसाब-किताब दोनों को ही करना पड़ता था। सौरभ को बहुत बार यश की याद सताती थी।
लेकिन फिर उसके कारण हुए नुकसान को याद करके उसका गुस्सा और बढ़ जाता था। वह यह भूल ही नहीं पाता था कि उनका अच्छा-खासा काम यश की जिद के कारण खत्म हो गया।
उधर यश भी सौरभ के बिना अकेला हो गया था। उसे अपनी गलती का अहसास था। एक दिन हिम्मत जुटाकर वह सौरभ से मिलने गया।
उसने सौरभ से माँफी माँगी और बोला-'तुम्हारे बिना में बहुत अकेला हो गया हूँ सोरभ।
में अपनी गलती मानता हूँ। हो सके तो मुझे माफ कर दो।'
सौरभ गुस्सा जरूर था, लेकिन अपने सबसे प्यारे दोस्त के बिना उसे भी कुछ अच्छा नहीं लगता था।
उसने उठकर यश को गले से लगा लिया। उसकी आँखों में आँसू आ गए।
वह बोला, 'यश गलती तो किसी से भी हो सकती हे। तुम्हें गलती का अहसास हो गया, यह अच्छी बात है।'
और एक बार फिर दोनों दोस्त साथ आ गए, अपने व्यापार को दूर तक फैलाने के लिए।