बहुत पुरानी बात है, एक अमीर आदमी था।
उसके पास सेवा करने के लिए बहुत से नौकर-चाकर थे।
उन्हीं में से एक था सेवक।
सेवक बहुत मन लगाकर सभी काम करता था। वह बहुत प्रेम से अपने
मालिक की सेवा करता था। लेकिन उसका मालिक बहुत अधिक कठोर हृदय का था।
वह अपने नौकरों को पूरा खाना भी नहीं देता था। हर छोटी गलती पर वह उन्हें मारता था और भला-बुरा कहता था।
उसके अत्याचार से परेशान होकर सेवक एक दिन वहाँ से भाग गया।
वह भागते-भागते एक जंगल में पहुँचा। जंगल में एक पेड के नीचे बैठकर वह थकान दूर कर रहा था।
तभी उसने एक हाथी की चीख सुनी। उसने देखा कि कुछ दूरी पर एक हाथी बैठा हुआ था।
उसके पाँव में काँच का एक बड़ा-सा टुकड़ा घुस गया था।
उस हाथी का दर्द सेवक से देखा नहीं गया। वह उसके पास गया और धीरे-से काँच का टुकड़ा निकाल दिया।
काँच निकलने से हाथी को बहुत आराम मिला।
फिर सेवक ने जंगल से एक जडी-बूटी तोड़ी और उसके पत्तों को हाथी के घाव पर बाँध दिया। दो दिन में हाथी का पाँव ठीक हो गया।
सेवक हाथी का उपचार करने के बाद दूसरे शहर की ओर चल पड़ा।
उसके कपडे गंदे हो गए थे। तीन दिन से उसने ठीक से खाना भी नहीं खाया था। बाल फैल गए थे।
उसने शहर में पाँव रखा तो लोगों ने उसकी वेशभूषा और चेहरा देखकर उसे चोर समझ लिया।
'जरूर कहीं से भागकर आया है।'
“जेल तोड़ी होगी।'
“तभी ऐसा दिखता है।'
“कहीं पड़ोसी देश का गुप्तचर तो नहीं, वेष बदलकर आया होगा।'
सब तरह-तरह की बातें कर रहे थे। राजा ने उसके बारे में सुना तो विदेशी गुप्तचर समझकर उसे मृत्यु-दंड दे दिया।
उसे एक पिंजरे में बंद कर दिया गया और एक जंगली हाथी को वहाँ छोड़ दिया गया। हाथी गुस्से से चिंघाड़ता हुआ उसकी ओर आया।
लेकिन जैसे ही उसने सेवक को देखा, उसके पैरों में झुककर अभिवादन करने लगा।
फिर उसने सेवक को अपनी सूँड से उठाया।
लोग बोले, 'लगता है जोर से पटक देगा।'
लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
उसने सेवक को ध्यान से अपनी पीठ पर बैठा लिया। असल में यह वही हाथी था, जिसकी सेवा सेवक ने की थी।
राजा ने यह घटना सुनी तो सेवक को बुलाया।
सेवक ने पूरी बात राजा को बताई। राजा बहुत खुश हुए। उन्होंने सेवक की सेवा-भावना और दया देखकर उसे क्षमा कर दिया ।
सेवक को राजा का विशेष परिचारक बना दिया गया।