क्या आप मुझे सिखाएँगे

नाना नानी की कहानियाँ

नदी के किनारे एक छोटा-सा शहर था।

वहाँ पर एक नौजवान रहता था, जो बहुत अच्छी बाँसुरी बजाता था।

जब भी वह पेड की छाया में बैठकर बाँसुरी बजाना शुरू करता था, आस-पास के लोग उसकी मीठी धुन में खो जाते थे।

वे अपना काम करते-करते रुक जाते थे और मगन होकर बाँसुरी का मीठा संगीत सुनते थे।

यहाँ तक कि पेड पर बैठी चिडियाँ और आस-पास घूमते हुए पशु भी एकदम शांत हो जाते थे और मीठी धुनों पर झूमने लगते थे।

इस गुण के कारण लोगों ने नौजवान को 'संगीत' कहकर ही पुकारना शुरू कर दिया था।

ऐसे ही एक दिन संगीत ने अपनी बाँसुरी ली और गाँव के बाहर आकर नदी के किनारे बैठ गया।

फिर वह अपनी धुन में खो गया। नदी के किनारे कुछ साधु यज्ञ कर रहे थे।

बाँसुरी की धुन से उनक॑ मंत्रोच्चारण में बाधा पड़ने लगी।

तब एक साधु उठकर संगीत के पास आए। वे प्रेमपूर्वक बोले, ' पुत्र तुम कुछ देर के लिए इस संगीत को बंद कर दो।

हमारा यज्ञ पूरा होने ही वाला है। फिर हम सब तुम्हारा संगीत सुनने आएंगे।'

लेकिन संगीत अपनी धुन में इतना खोया हुआ था कि उसने कुछ सुना ही नहीं।

साधु फिर बोले, “पुत्र, हमारी बात सुनो।'

लेकिन संगीत ने फिर भी नहीं सुना। आँखें मूँदकर लगातार बाँसुरी बजाता रहा।

साधु महाराज के बार-बार कहने पर भी जब उसने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया तो उन्हें क्रोध आ गया और उन्होंने उसे श्राप दे दिया।

'तुझे सबके बीच में बैठकर बाँसुरी बजाने का बहुत शौक है न! ले, मैं तुझे श्राप देता हूँ कि तेरा शरीर इतना भद्दा हो जाए कि तू किसी के सामने जा ही न सके।'

अब संगीत का ध्यान टूटा, लेकिन तब तक देर हो चुकी थी। उसने साधु बाबा से क्षमा माँगी।

साधु ने उसकी नम्रता देखी तो उन्हें दया आ गई। वे बोले, ' क्योंकि तूने यह भूल अनजाने में की है इसलिए इस श्राप का तोड़ मैं बता देता हूँ।

यदि कोई राजकुमारी तेरी बाँसुरी सुनकर मोहित हो जाए और तेरे पास आकर सीखने की इच्छां करे तो तू श्राप से मुक्त हो जाएगा।'

संगीत बहुत दुखी हुआ। उसके पूरे शरीर पर सफेद धब्बे हो गए थे।

वह किसी के सामने जाने लायक नहीं रहा था।

इसीलिए उसने जंगल में अपने लिए छोटी-सी झोंपड़ी बनाई और वहीं रहने लगा। किसी तरह जंगली फल खाकर अपना पेट भरता था और फिर बाँसुरी की धुनों में

खो जाता था। उसका जीवन बहुत कठिन हो गया था।

उसके शरीर को देखकर पशु-पक्षी भी उसके पास आने में डरते थे।

तो फिर कोई राजकुमारी उसके पास कैसे आ सकती थी। यह सोचकर ही उसे रोना आ जाता था।

इसी तरह एक वर्ष बीत गया। एक दिन वह अपनी झॉंपडी के पास बैठकर बाँसुरी बजा रहा था।

तभी दूर उसने राजा का रथ देखा। रथ पर राजकुमारी सवार थी, जो अपनी सखियों और सिपाहियों के साथ दूसरे राज्य की ओर जा रही थी।

जब संगीत के मीठे स्वर उन्होंने सुने तो राजकुमारी ने रथ रोकने को कहा।

राजकुमारी रथ से उतरी और संगीत की दिशा में चलने लगी। संगीत ने राजकुमारी को आते देखा।

वह झोंपड़ी के अंदर जाकर बाँसुरी बजाने लगा। राजकुमारी ने वहाँ आकर आवाज दी। 'कौन हे वहाँ ? कृपया बाहर आइए।'

संगीत ने अपने आपको एक बड़ी चादर से ढक लिया और बाहर आया। उसने अपना चेहरा भी छिपा लिया था।

“आप कौन हैं और यहाँ क्यों रहते हैं ?'

आपकी मीठी धुन ने मेरा मन मोह लिया है, मुझे संगीत सीखने की बहुत इच्छा है। क्या आप मुझे सिखाएँगे ?'

बस राजकुमारी ने इतना कहा और एक चमत्कार हुआ। संगीत को दिया गया श्राप टूट गया।

राजकुमारी को बहुत आश्चर्य हुआ जब उसने अपने सामने खडे हुए सुंदर नौजवान को देखा।

संगीत ने राजकुमारी को बाँसुरी की पूर्ण शिक्षा दी।

वे दोनों अच्छे मित्र बन गए और संगीत को राजदरबार में संगीतज्ञ का पद दे दिया गया।