वीरगढ़ के राजा परमवीर के दरबार में कुशाग्रबुद्धि नाम के एक विद्वान दरबारी थे।
उनकी ख्याति चारों ओर फैली हुई थी।
किसी भी गंभीर समस्या का हल वे आसानी से निकल लेते थे।
मुसीबत में फँसे व्यक्तियों की सहायता करना उन्हें बहुत अच्छा लगता था।
इसीलिए सभी लोग उनका बहुत सम्मान करते थे।
वीरगढ में एक साधारण-सा किसान रहता था, जिसका नाम था अभागू।
असल में उसके माता-पिता ने उसका नाम भाग्यवान रखा था। लेकिन उसको सभी अशुभ मानते थे।
उसके साथ कुछ ऐसी घटनाएँ हुईं कि लोगों को विश्वास हो गया कि वह बहुत ही अशुभ है।
लोगों का मानना था कि उसका चेहरा जो सुबह-सुबह देख ले उसको दिन-भर खाना नहीं मिलता।
सभी उससे दूर-दूर रहते थे। और इसीलिए उसका नाम भाग्यवान से बदलकर अभागू पड़ गया था।
राजा परमवीर ने भी अभागू के बारे में बहुत सुना था।
उनको इच्छा हुई कि वे स्वयं इस बात की जाँच करें।
इसलिए उन्होंने अभागु को राजमहल में बुलाया और रात को वहीं रोक लिया।
सुबह जब वे उठे तो आँखें खोलने से पहले अभागू को उनके कमरे में भेज दिया गया। राजा ने आँखें खोलकर सबसे पहले अभागू का चेहरा देखा।
फिर वे अपने राज-काज में व्यस्त हो गए।
दोपहर को जब वे खाना खाने बैठे तो कहीं से एक मक्खी उड़ती हुई आई और खाने में गिर गईं। राजा परमवीर को बहुत क्रोध आया।
उन्होंने खाना दोबारा बनाने का आदेश दिया। लेकिन जब तक दोबारा भोजन तैयार हुआ, उनकी भूख ही मर गई। इसलिए वे खाना खाए बिना ही चले गए।
उन्हें विश्वास हो गया कि इसका कारण अभागू ही था। इसलिए उन्होंने अभागू को मृत्युदंड दे दिया।
अभागू बेचारा सच में अभागा हो गया था। जब उसे ले जाया जा रहा था, तब रास्ते में उसको कुशाग्रबुद्धि मिले।
अभागू ने उन्हें पूरी घटना सुनाई। तब कुशाग्रबुद्धि ने उसके कान में कुछ कहा।
मृत्युदंड से पहले अभागू से पूछा गया कि उसकी अंतिम इच्छा क्या है। तब उसने कहा, “मैं मरने से पहले महाराज से कुछ कहना चाहता हूँ।'
उसकी अंतिम इच्छा को पूरा करने के लिए उसे इस बात की अनुमति दे दी गई।
तब उसने राजा से कहा, 'महाराज! सुबह उठकर आपने मेरा चेहरा देखा तो आपको भोजन नहीं मिला।
लेकिन मैंने आपका चेहरा देखा तो मुझे मृत्युदंड मिल गया।
अब आप ही बताएँ कि ज्यादा अशुभ कौन है ? मैं या आप ?'
महाराज उसकी बात सुनकर चौंक गए। उन्हें उसकी बुद्धिमानी पर गर्व हुआ और उन्होंने ईनाम देकर उसे अपने घर जाने की अनुमति दे दी।