एक थी बिल्ली मिनी।
बहुत ही स्वार्थी। किसी के साथ बात करना उसे ज्यादा पसंद नहीं था।
बस अपने मतलब की बात करती थी। दूसरी बिल्लियों के साथ खेलना भी उसे पसंद नहीं था।
' अपने खिलौने मैं किसी को नहीं दूँगी। मुझे अकेले खेलना ही अच्छा लगता है।' वह कहती।
जब वह खा रही होती थी तो कोई उसके पास नहीं आता था। सब जानते थे कि वह यही कहेगी-
“जाओ यहाँ से, मुझे खाने दो, तुम जाकर अपना खाना खाओ।'
कोई भी चीज बाँटना उसे अच्छा नहीं लगता था।
एक दिन उसके दोस्त उससे बोले-
“मिनी चलो तुम्हारी गेंद से खेलते हैं।'
'ए हाथ मत लगाना मेरी गेंद को।' वह चिल्लाई।
“मेरी गेंद खराब हो जाएगी।'
उसके दोस्त वापिस चले गए।
वह अकेली ही ,अपनी गेंद से खेलने लगी। गेंद को पैर से लुढ़काती, फिर दौड़कर उसे लेकर आती। काफी देर जब वह ऐसे ही अकेली खेलती रही तो थककर बैठ गई।
तभी उसने देखा कि बहुत सारी चींटियाँ खाना इकट्ठा कर रही थीं।
वे साथ-साथ खाने को उठाकर ले जा रही थीं। इस तरह मिल-जुलकर वे बहुत बडे-बडे टुकड़े भी खिसका रही थीं। मिनी को अच्छा लगा।
उसने देखा कि पेड पर बहुत सारी चिंडियाँ चहचहा रही थीं। वे साथ मिलकर एक मीठा गीत गा रही थीं। मिनी को अच्छा लगा।
फिर उसने देखा फूलों की क्यारी के ऊपर बहुत सारी तितलियाँ उड़ रही थीं। वे साथ मिलकर फूलों का रस पी रही थीं। मिनी को अच्छा लगा।
उसने देखा कि पेड पर मधुमक्खियों का एक बड़ा-सा छत्ता था। सभी मधुमक्खियाँ साथ मिल-जुलकर फूलों के रस से शहद बना रही थीं। मिनी को बहुत अच्छा लगा।
उसने देखा सभी मिल-जुलकर काम करने में कितने खुश थे। अचानक उसे बहुत अकेलापन लगने लगा।
'काश, मेरे दोस्त मेरे पास होते।' उसने सोचा।
वह अपने दोस्तों को ढूँढ़ने निकल पड़ी। उसने सभी जगह उन्हें ढूँढा।
लेकिन वह पता नहीं कहाँ गायब हो गए थे। वह ढूँढ़ते-दूँढ़ते बागीचे में पहुँची। उसके दोस्त वहीं पर छिपे बैठे थे।
मिनी ने बहुत आवाजें दीं। पर वे नहीं निकले। आखिर मिनी थककर बैठ गई। उसे उदास देखकर उसके दोस्त भी दुखी हो गए और एक-एक करके उसके पास आए।
मिनी खुश हो गई। वह बोली, 'मेरे साथ खेलोगे ?'
“लेकिन तुम्हें तो किसी के साथ खेलना अच्छा नहीं लगता।' वे एक साथ बोले।
“मैं अब समझ गई हूँ कि साथ-साथ, मिल-जुलकर काम करने में ही मजा है। मुझे माफ कर दो, मैं तुम पर यूँ ही चिल्लाई थी।'
सब दोस्त खुश हो गए। उसके बाद वे हमेशा साथ खेलते थे, साथ खाते थे और साथ ही सो जाते थे।