सर्दियों का मौसम था।
नन्हे खरगोश के घर को चारों ओर घास-फूस लगाकर गर्म रखा जाता था।
रात होने वाली थी। नन्हे खरगोश के मम्मी-पापा ने उससे कहा, “आ जाओ नन्हे, सो जाओ।
रात होने वाली है। और बाहर ठंड भी बहुत है।
लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही। मुझे बाहर जाकर खेलना है। नन्हे ने कहा।
“बेटा, कल सुबह खेल लेना। रात में बाहर जाओगे तो बीमार हो जाओगे।' मम्मी ने उसे समझाया।
मम्मी की बात मानकर नन्हे आकर लेट गया। लेकिन उसे जरा भी नींद नहीं आ रही थी। वह थोडी देर लेटा।
फिर मम्मी-पापा से छिपकर बाहर आ गया और जंगल में घूमने निकल पड़ा।
वह चलता जा रहा था। इस तरह कभी भी वह जंगल की ओर नहीं आया था। लेकिन वह रास्ता ध्यान से देख रहा था।
मिट्टी में उसके पाँवों के छोटे-छोटे निशान बनते जा रहे थे। 'इनको मदद से मैं घर वापिस पहुँच जाऊँगा', उसने सोचा।
वह काफी दूर आ गया था। तभी जोर से आँधी चलने लगी।
वह घबरा गया। फिर वापिस मुड़ा और घर की ओर चलने लगा। वापिस जाने का रास्ता उसके पाँवों के वो निशान ही बता सकते थे।
लेकिन तेज आँधी ने इतनी धूल उड़ाई थी कि निशान मिट गए थे। वह घबराकर इधर-उधर भागने लगा। उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे।
नन्हे बहुत डर गया था। दौड़ते-दौड़ते उसने यह भी नहीं देखा कि आगे तालाब है।
और फिर छपाक से तालाब में गिर गया। वह मदद के लिए चिल्लाने लगा।
एक हिरन और उसका बच्चा वहाँ से जा रहे थे। उन्होंने नन्हे खरगोश को मुश्किल में देखा तो रुक गए।
उन्होंने किसी तरह खरगोश को बाहर निकाला। वह ठंड से काँप रहा था। हिरन जल्दी से नन्हे को अपने घर ले गया।
घर जाकर हिरन की मम्मी ने उसे अपनी गोद में लपेट लिया और दूध पीने को दिया।
अब नन्हे को अच्छा लग रहा था। लेकिन उसको अब घर की याद आने लगी थी। हिरन ने उससे घर के बारे में पूछा तो नन्हे ने बताया कि उसे ठीक से पता नहीं है।
इधर नन्हे के मम्मी-पापा परेशान थे कि नन्हे कहाँ गया। वे उसे ढूँढ़ने निकल पडे।
हिरन भी नन्हे को लेकर जंगल में निकला। रास्ते में ही नन्हे के मम्मी-पापा उसे दूर से आते हुए दिखाई दिए। वे दौड़कर नन्हे के पास आए और उसे गले से लगा लिया।
“कहाँ चले गए थे तुम?' मम्मी रो रही थी।
“ऐसे बिना बताए थोडे ही जाते हैं।' पापा बोले।
नन्हें ने उनसे माफी माँगी।
नन्हे के मम्मी-पापा ने हिरन को धन्यवाद दिया और नन्हे को साथ लेकर घर की ओर चल दिए।