कश्मीर के एक गाँव के बाहर सेब का एक बड़ा-सा पेड़ था।
उस पर बहुत ही मीठे सेब उगते थे। गाँव के सभी लोग उस पेड का बहुत ध्यान रखते थे।
बच्चे पेड़ के नीचे आकर खेलते थे। बडे मिलकर सेब तोडते थे और आपस में बाँट लेते थे।
पेड़ पर इतने सारे सेब लगते थे कि सबके हिस्से में काफी सारे सेब आ जाते थे।
फिर सेबों को सब अलग-अलग तरीके से इस्तेमाल करते थे।
सेब का जूस, सेब की आइसक्रीम, सेब की सब्जी, सेब का सलाद, क्या-क्या नहीं बनता था वहाँ।
एक दिन शहर से एक बडे अधिकारी गाँव में आए।
उन्होंने सबको बताया कि गाँव को शहर से जोड़ने के लिए वहाँ रेलवे लाइन बिछाई जाएगी।
सब गाँव वाले खुशी से झूम उठे। अभी तक शहर जाने के लिए उन्हें बहुत मुश्किलें उठानी पड़ती थीं।
रेलगाड़ी के आ जाने से उनकी सब मुश्किलें हल हो जाएँगी। वे सब यही सोच रहे थे।
फिर अधिकारी ने गाँव वालों को नक्शा दिखाया।
उसमें यह बताया गया था कि रेलवे लाइन गाँव के कौन-से हिस्से से होकर जाएगी। सबने देखा कि रेलवे लाइन को बिछाने के लिए सेब के पेड़ को काटना पड़ेगा।
पेडु बिलकुल रेलवे लाइन के रास्ते में आ रहा था। सब उदास हो गए।
अधिकारी चले गए। वह कहकर गए थे कि ठीक पंद्रह दिन बाद काम शुरू हो जाएगा।
उस दिन शाम को गाँव में सब बडे इकट्ठे हुए। कुछ लोगों का कहना था कि पेड को नहीं काटना चाहिए।
कुछ लोग कह रहे थे कि रेलवे लाइन ज्यादा फायदेमंद होगी।
इस तरह बहुत सोच-विचार के बाद सभी बडों ने मान लिया कि गाँव की तरक्की के लिए पेड को काटना ही पडेगा।
जब बच्चों ने यह बात सुनी तो वे बहुत दुखी हुए। उन्होंने भी एक सभा बुलाई।
उसमें निर्णय लिया गया कि किसी न किसी तरह पेड को बचाना ही होगा।
क्यों न पेड़ को यहाँ से हटकर कहीं और लगा दिया जाए। वे एक साथ बोले।
और सारे बच्चे हाथों में छोटे-छोटे औजार लेकर पेड के चारों ओर इकट्ठे हुए। वे उसकी जड़ों को खोदकर निकालना चाहते थे।
जब बडे लोगों ने बच्चों की लगन को देखा तो वे भी अपने औजारों के साथ वहाँ आ गए।
सबने मिलकर पेड़ को बाहर निकला। इस बात का विशेष ध्यान रखा गया कि पेड की जड़ों को नुकसान न हो।
गाँव की सबसे बड़ी और मजबूत गाडी को वहाँ लेकर आया गया। सबने मिलकर पेड़ को धीरे से गाड़ी में रखा।
फिर वे उसे कुछ दूर एक टीले पर ले गए। वहाँ एक बड़ा-सा गड्ढा खोदा गया और पेड़ को वहाँ लगा दिया गया।
अगले कई दिनों तक उसका खास ध्यान रखा गया। धीरे-धीरे पेड़ में शक्ति आ गई और वह पहले जैसा मजबूत हो गया।
कुछ दिनों बाद गाँव में रेलवे लाइन भी आ गई।
अब गाँववाले रेल में बैठकर शहर जाते हैं और पेड उन्हें देखकर मुस्कुराता है। जैसे कि कह रहा हो, धन्यवाद, मुझे बचाने के लिए।