जब धरती और बादलों का विवाह हुआ

नाना नानी की कहानियाँ

धरती और आकाश के विषय में अलग-अलग जगह अलग-अलग तरह के किस्से सुनाए जाते हैं।

मध्यप्रदेश के बस्तर आदिवासी जो किस्सा सुनाते हैं, वह बहुत मजेदार है।

उनका मानना है कि-

बहुत साल पहले जब सूर्य नहीं था, चंद्रमा भी नहीं था, तब धरती और बादलों का विवाह हुआ।

बादल हमेशा धरती के पास रहना चाहते थे।

इसीलिए धरती और बादलों के बीच रहने वाले मनुष्य फँस जाते थे। उनको बढ़ने के लिए जगह ही नहीं मिलती थी।

इसीलिए उन दिनों मनुष्य एकदम । छोटे-छोटे होते थे।

इतने छोटे कि खेत जोतने के लिए बैल नहीं बल्कि चूहों की मदद ली जाती थी।

पौधों पर से सब्जियाँ तोड़ने के पहले मनुष्य को पौधों पर ऐसे चढ़ना पड़ता था जैसे कि आजकल आम तोड़ने के लिए पेड़ पर चढ़ना पड़ता है।

यदि मनुष्य थोड़ा भी उचकना चाहता था तो उसका सिर बादलों से टकराता था। इसलिए वह परेशान रहता था।

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एक दिन एक बूढ़ी अम्मा झाड़ू, लगा रही थीं, वह जितनी बार झाड़ू को इधर से उधर या उधर से इधर घुमाती थीं, झाड़ू, बादलों से टकराती थी ।

जब बार-बार ऐसा हुआ तो बूढ़ी अम्मा के सब्र का बाँध टूट गया और उसने अपनी झाड़, से बादलों को जोर से धकेला।

बूढ़ी अम्मा ने उन्हें इतनी ताकत से धकेला कि आकाश और बादल तेजी से ऊपर की ओर उठे और बहुत दूर चले गए।

और तभी से आकाश और बादल इतनी ऊपर हैं, उसके बाद ही मनुष्य को हाथ-पैर फैलाने और घुमाने की जगह मिली।

उन्हें बड़ा होने के लिए भी जगह मिल गई। इसीलिए अब हम मनुष्य चूहों और सब्जी के पौधों से काफी बडे हें।