एक बिल्ली और एक चूहा क्या दोस्त हो सकते हैं ?
अरे भाई हो सकते हैं- हमारी बात मानिए।
ये तब की कहानी है जब सच में बिल्ली और चूहा दोस्त थे। वे एक ही घर में रहते थे।
मिल-बाँटकर खाते थे।
चूहा थोड़ा समझदार था। वह चारों ओर का ध्यान रखता था।
बिल्ली जरा मस्तमौला थी। सर्दियाँ आ रही थीं।
चूहा बिल्ली से बोला, “हमें सर्दियों के लिए खाना इकट्ठा कर लेना चाहिए।
ज्यादा ठंड पड़ने पर खाना ढूँढ़ने जाना मुश्किल हो जाएगा और हमें भूखा रहना पडेगा।'
तब बिल्ली को ध्यान आया कि चूहा ठीक कह रहा है।
दोनों साथ-साथ निकल पडे। उन्हें एक डिब्बा मिला। हिलाकर
देखा तो लगा कि डिब्बा पूरा भरा हुआ था। उन्होंने जल्दी से डिब्बे के अंदर झाँककर देखा तो पाया कि उसमें बहुत सारी चाकलेट्स और मिठाइयाँ थीं।
डिब्बे में से बहुत ही बढ़िया सुगंध आ रही थी। उन्होंने इधर-उधर देखा। वहाँ कोई नहीं था, जो उसे लेने आ रहा हो।
'जरूर किसी मनुष्य के हाथ से गिर गया होगा, यह डिब्बा।' चूहा बोला।
'हाँ, पर मिला तो हमें है न! अब यह हमारा है। चलो इसे सर्दियों के लिए छिपाकर रख दें।' बिल्ली ने कहा।
दोनों ने मिलकर डिब्बे को एक पेड की कोटर में छिपा दिया। उनको विश्वास था कि वहाँ कोई भी डिब्बे को ढूँढ़ नहीं पाएगा।
चूहा निश्चित था कि अब सर्दियों की चिता नहीं करनी पडेगी। लेकिन बिल्ली को रात-दिन उन मिठाइयों के ही सपने आते थे।
'जिन मिठाइयों की सुगंध इतनी अच्छी हे, वे कितनी स्वादिष्ट होंगी। पता नहीं सर्दियाँ कब आएँगी।' वह अक्सर सोचा करती थी।
सर्दियाँ आने में अभी कुछ दिन बाकी थे। एक दिन बिल्ली को मिठाइयाँ चखने की इतनी ज्यादा इच्छा हुई कि वह अपने-आपको रोक नहीं पाई।
वह चूहे से बोली, 'मेरी तबियत ठीक नहीं है, मैं जरा टहलकर आती हूँ।'
'मैं भी साथ में आता हूँ।' चूहा बोला।
'अरे नहीं भाई, तुम जरा घर का ध्यान रखो। मैं अकेली चली जाऊँगी।' बिल्ली ने कहा।
चूहे ने उसकी बात मान ली और घर पर ही रुक गया।
बिल्ली पेड़ के पास पहुँची और डिब्बा निकाला। उसके मुँह में बेहद पानी आ रहा था। उसने जल्दी से डिब्बे से चार-पाँच मिठाइयाँ निकालीं और खा गई।
फिर डिब्बे को वापिस रखकर घर आ गई। चूहा उसका इंतजार कर रहा था। वह बोला, 'केसी तबियत है अब ?
'पहले से अच्छी है।' बिल्ली बोली।
उसके बाद बिल्ली और भी ज्यादा सोचने लगी उस डिब्बे के बारे में। वह स्वाद! अहा, मुँह में पानी आ जाता था उसके।
एक दिन फिर से उसका धेर्य खत्म हो गया। वह चूहे से बोली, ' आज फिर मेरी तबियत ठीक नहीं है। तुम घर का खयाल रखो, मैं जरा टहलकर आती हूँ।'
चूहे को आश्चर्य भी हुआ कि आजकल बिल्ली की तबियत अचानक खराब क्यों हो जाती है। लेकिन दोस्त पर विश्वास करके वह घर पर ही रुक गया। बिल्ली ने जाकर डिब्बे की आधी मिठाइयाँ खा लीं।
चूहे को शक तो जरूर हुआ पर वह कुछ बोला नहीं।
एक दिन जब फिर से बिल्ली की तबियत खराब हुई तो चूहा उसके पीछे-पीछे टहलने निकल पड़ा।
उसका शक सही निकला। बिल्ली पेड के पास रुकी और डिब्बा निकालकर मिठाई खाने लगी।
चूहे को बहुत गुस्सा आया। उसे दुख भी हुआ कि उसके प्यारे दोस्त ने उसे धोखा दिया।
उसने बिल्ली को रंगे हाथों पकड़ लिया और उस दिन से, अपनी दोस्ती भूलकर बिल्ली और चूहा दुश्मन बन गए।