जब मनुष्य को मिला लोहा

नाना नानी की कहानियाँ

बहुत पुराने समय की बात है, जब आज जैसे हथियार नहीं होते थे।

मनुष्य को बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ता था।

कुछ भी काटने या छीलने के लिए उसे पत्थर के नुकीले टुकडों का प्रयोग करना पड़ता था।

यह उस समय की बात है, जब लोहे जैसी धातु के विषय में मनुष्य जानता ही नहीं था।

उन्हीं दिनों एक व्यक्ति था खोजीराम।

खोजीराम को भी दूसरे व्यक्तियों की तरह पत्थर के टुकड़ों से काम करना अच्छा नहीं लगता था। जरा सोचो-गड्ढा खोदना है-पत्थर से खोदों, सब्जी छीलनी है-पत्थर से काटो। फल काटने हैं-पत्थर से छीलो।

कैसी मुश्किल होती होगी न।

तो खोजीराम ने एक रात एक सपना देखा कि उसे एक भारी-सी चीज मिली है।

वह पत्थर जैसी ही मजबूत है, गर्म होकर मुलायम हो जाती है। ठंडी होने पर फिर पहले जैसी कठोर और मजबूत हो जाती है यह एक धातु थी, जिसे आज हम लोहा कहते हैं।

वह चौंककर जाग गया और सोचने लगा कि यह अजीब चीज कहाँ मिलेगी ?

अगले दिन वह सुबह उठकर लोहा ढूँढ़ने निकल पड़ा। उसने पेडु-पौधों से पूछा, क्या तुम जानते हो, लोहा कहाँ मिलेगा ?' वे बोले, 'हम नहीं बताएँगे।

लोहा मिल गया तो तुम उसकी कुल्हाड़ी बनाकर हमें काट दोगे।'

इस तरह उसे पता चला कि लोहे से पेड़ों को भी काटा जा सकता है।

फिर उसने जानवरों से पूछा, 'क्या तुम जानते हो कि लोहा कहाँ मिलेगा ?

जानवर बोले, 'हम नहीं बताएँगे। नहीं तो तुम लोहे के तीर से हमें मार डालोगे ?'

और ऐसे उसे पता चला कि लोहे से जानवरों का शिकार भी होता है।

खोजीराम लोहे की तलाश में चलता रहा। आखिर वह एक नदी के किनारे पहुँचा। वहाँ बहुत सारे पत्थर पड़े हुए थे।

वह बहुत थक गया था। इसलिए एक बड़े पत्थर पर बैठ गया और सोचने लगा।

सोचते-सोचते वह आसपास के पत्थर उठाकर यूँ ही पानी में फेंक रहा था। उसने ऐसा ही एक पत्थर उठाना चाहा तो वह उठा नहीं पाया।

यह काफी भारी था। बाकी पत्थरों से अलग। खोजीराम ने उस पत्थर को उठाया और घर की ओर चल पड़ा।

उसने सोचा, 'यह मजबूत पत्थर हे। जब तक लोहा नहीं मिलता, इसी को तोड़कर औजार बनाए जाएँ।'

घर आकर उसने उस पत्थर को तोड़ना चाहा, लेकिन वह नहीं टटा।

जब कोशिश करते-करते बहुत देर हो गई तो उसने गुस्से में वह पत्थर उठाकर पास में जल रही आग में फेंक दिया। उसने देखा कि पत्थर धीरे-धीरे गर्म होकर लाल होने लगा।

उसने एक लकड़ी से उसे हिलाया तो वह मुलायम भी लगा। वह खुशी से चिल्लाया, 'यह तो मेरे सपने वाली चीज है। मिल गया लोहा। मैंने ढूँढ लिया लोहा।'

अब खोजीराम ने उसके कुछ नुकीले औजार बनाए। वह पेडों को काटने लगा। जानवरों को मारने लगा।

ऐसा करके वह अपने आपको सबसे ताकतवर समझने लगा। लेकिन लोहे के उस पत्थर का एक बडा हिस्सा अभी उसके पास बचा हुआ था।

जब उसने लोहे का गलत उपयोग करना शुरू किया तो जानवर उससे डरने लगे। एक दिन एक हाथी को बहुत गुस्सा आया। उसने बचे हुए लोहे के पत्थर को अपने पैर से दूर उछाल दिया। पत्थर इतनी तेज उछला कि चंद्रमा से जाकर टकराया।

चंद्रमा में गड्ढे पड़ गए और उस पत्थर के हजारों टुकड़े हो गए। ये टुकड़े धरती की ओर वापिस आए और चारों ओर जहाँ-तहाँ गिर गए। क्‍ यही कारण है कि आज भी लोहा धरती के ज्यादातर हिस्सों में ! पाया जाता है। लेकिन मनुष्य ने शायद इस घटना से कुछ सीखा नहीं।

उसका जानवरों को मारना और पेड़ों को काटना आज भी जारी है।

काश!

मनुष्य समझ पाता कि ऐसा करना अच्छी बात नहीं है।