ईश्वर सब ठीक करेंगे, लेकिन ...

नाना नानी की कहानियाँ

केरल के एक गाँव में नायर परिवार रहता था।

परिवार का सबसे छोटा सदस्य था संदीप।

नायर परिवार के लोग बहुत ही धार्मिक थे। वे अक्सर पूजा-पाठ करते थे। ब्रत रखते थे। धार्मिक मान्यताएँ उनके लिए बहुत महत्त्वपूर्ण थीं।

सुबह जल्दी उठकर पूरा परिवार नदी में स्नान करता था। अब चाहे वह गर्मियों की सुबह हो या ठिठुरती सर्दियाँ हों। नियम तो नियम ही था।

उसके बाद सब एक घंटे तक पूजा-पाठ करते थे।

बाद में रसोई में खाना बनता था।

ये नियम सभी के लिए समान थे। छोटे संदीप को भी यह सब करना ही पड़ता था।

यूँ तो उस गाँव के ज्यादातर लोग ऐसे धार्मिक ही थे। लेकिन वे भक्ति के साथ-साथ अपनी बुद्धि का भी उपयोग करते थे।

इसीलिए वे उन्‍नति करते जाते थे। लेकिन नायर परिवार के लोग कहते- “ईश्वर पर भरोसा रखो, वह सब ठीक करेगा।' वे सिर्फ अपनी भक्ति पर ध्यान देते थे।

ऐसे ही वातावरण में संदीप बड़ा हुआ।

नायर परिवार चावल की खेती करता था। एक बार फसल बहुत अच्छी हुई। उन्होंने सबसे पहले कुछ दाने ईश्वर के आगे चढाए। बाद में फसल को काटा और फिर साफ किया।

उनको विश्वास था कि ईश्वर की कृपा से इस बार उन्हें बहुत लाभ होगा। गाँव के बाकी किसानों की फसल भी अच्छी हुई थी।

लेकिन नायर-परिवार के खेत के चावल बहुत ही बढ़िया थे। दूसरे किसानों ने समय पर शहर जाकर अपने लिए अच्छे ग्राहक ढूँढ लिए।

पर नायर-परिवार का मानना था-जब ईश्वर ने अच्छी फसल दी हे तो अच्छे ग्राहक भी वही भेजेंगे।

लेकिन ऐसा नहीं हुआ। आखिर उन्हें अपनी फसल कम दामों में बेचनी पड़ी। वे तब भी संतुष्ट थे-'कोई बात नहीं, ईश्वर सब ठीक कर देंगे।'

एक बार समुद्र में बहुत तेज तूफान आया।

समुद्र के किनारे के गाँवों में पानी भर गया।

संदीप का गाँव भी समुद्र-तट के बिलकुल पास था।

लोग जान बचाकर दूसरे गाँवों की ओर भागने लगे। संदीप उस समय अपनी नानी के यहाँ गया हुआ था। लोगों के रिश्तेदारों ने अपने-अपने पहचान वालों को गाँव से दूर बुला लिया।

संदीप को जब तूफान के बारे में पता चला तो वह ईश्वर का ध्यान लगाकर मंदिर में बैठ गया।

उसके बूढ़े नाना-नानी ने उसे समझाया कि जाकर अम्मा-अप्पा की मदद करे। लेकिन संदीप को विश्वास था कि ईश्वर स्वयं उसके माता-पिता की मदद करेंगे।

उसने पूरे दिन ब्रत रखा, जिससे ईश्वर प्रसन्‍न हो जाए। उधर संदीप के माता-पिता भी तूफान को ईश्वर का क्रोध मानकर पूजा-पाठ में लग गए। उन्होंने अपने बचाव के लिए खुद कुछ नहीं किया। पूरी

जिम्मेदारी ईश्वर पर छोड दी।

आखिर वही हुआ, जिसका डर था। तूफान की लहरें संदीप के माता-पिता को बहाकर दूर ले गईं। तब उन्हें समझ में आया कि केवल पूजा-पाठ से कुछ नहीं होता है।

सौभाग्य से उन्होंने तूफान में फँसे लोगों की मदद कर रहे सिपाहियों को देखा। संदीप के माता-पिता ने उन्हें मदद के लिए पुकारा। उन्हें बचा लिया गया।

ईश्वर ने उनकी सहायता की लेकिन तब, जब उन्होंने खुद अपनी सहायता करनी चाही।