एक शहर में एक अमीर व्यक्ति था, नाम था कटोरामल।
उसके पास बहुत सारे बर्तन थे।
सभी आकार के बर्तन थे-चम्मच जितने छोटे और टोकरी जितने बडे।
उसके आस-पास के लोगों के घर जब भी कोई उत्सव होता था, वे स्ससे बर्तन ले जाते थे और बाद में गिनकर वापिस दे जाते थे।
बर्तन लौटाते समय सब उसको धन्यवाद देते थे। सकी प्रशंसा भी करते थे। अपनी प्रशंसा सुनना स्से बहुत अच्छा लगता था।
एक बार स्सका एक पड़ोसी कुछ बर्तन :स्ससे माँगकर ले गया। जब वह अगले दिन बर्तन लौटाने आया तो कटोरामल को बर्तन कुछ ज्यादा लगे।
स्सने पड़ोसी से कहा, 'आप जितने बर्तन ले गए थे, ये 'उससे ज्यादा लगते हैं।
तब वह पड़ोसी बोला, 'हाँ, असल में कुछ बर्तन जैसे कढाई, . चमचियाँ, तश्तरियाँ माँ बनने वाली थीं।
उन्होंने मेरे घर में बच्चों को जन्म दिया है।
मैं बच्चों को माँ से अलग नहीं करना चाहता था। इसीलिए आपको देने आया हूँ।'
“बच्चों को जन्म दिया ? बर्तनों ने ? यह कैसे हो सकता है।'
कटोरामल ने सोचा। लेकिन स्से पहले से ज्यादा ही बर्तन मिल रहे थे। अपना फायदा देखकर स्सने पड़ोसी की बात मान ली और सारे बर्तन रख लिए।
वह पड़ोसी की मूर्खता पर खुश था। कटोरामल इंतजार करने लगा कि वही पड़ोसी फिर से कब आएगा बर्तन माँगने। एक दिन सोचते-सोचते वह सो गया।
:स्सने एक बड़ा ही सुखद सपना देखा। :स्सने देखा कि धीरे-धीरे :ससके बर्तन इतने बढ़ गए हैं कि लोग उससे “बादशाह-ए-बर्तन' का सम्मान दे रहे हैं।
सपने में लोग उसकी जय-जयकार कर रहे थे-
“बर्तन-बादशाह जिंदाबाद! जिंदाबाद! '
और वास्तविकता में यह शोर बाहर से आ रहा था क्योंकि कोई उसका दरवाजा खटखटा रहा था, काफी देर से।
कटोरामल चौंककर जागा और दरवाजे की ओर भागा। सामने वही पड़ोसी खड़ा था।
उसे लगा कि उसका सपना अब सच हो ही जाएगा।
पड़ोसी ने बर्तन ले जाने की बात कही।
कटोरामल को इसी का तो इंतजार था। पड़ोसी ने जितने बर्तन माँगे थे, कटोरामल ने जबरदस्ती उससे कहीं ज्यादा बर्तन उसे दे दिए। पड़ोसी उसे धन्यवाद देकर चला गया।
अगले दिन कटोरामल अपने पड़ोसी और ढेर सारे बर्तनों का इंतजार करता रहा। लेकिन वह नहीं आया।
दो दिन हो गए, एक हफ्ता हो गया, धीरे-धीरे दस दिन बीत गए लेकिन वह नहीं आया। ग्यारहवें दिन कटोरामल से रहा नहीं गया।
वह पड़ोसी के घर जाने के लिए बाहर निकला। तभी वह पड़ोसी उसी के घर की ओर आता दिखाई दिया। वह बहुत उदास दिख रहा था।
कटोरामल ने बेसब्री से पूछा, 'अरे भाई, मेरे बर्तन कहाँ हैं ?
पड़ोसी उदास होकर बोला, “क्या बताऊँ कटोरामल, मेरे घर में उत्सव के बाद बर्तनों को कुछ बीमारी हो गई थी।
मैंने बहुत इलाज कराया, दस दिन तक इलाज चलता रहा।
लेकिन अफसोस को बात यह है कि इतने लंबे इलाज के बाद भी मैं आपके बर्तनों को बचा नहीं सका। सभी की मृत्यु हो गई। मुझे माफ कर दीजिए।'
“बर्तनों की मृत्यु हो गई ? यह कैसे हो सकता है ? बर्तन भी कभी मर सकते हैं क्या ?" कटोरामल गुस्से से चिल्लाया।
पड़ोसी नम्रता से बोला, “नाराज मत होइए। देखिए, अगर बर्तन, दूसरे बर्तनों को जन्म दे सकते हैं तो उनकी मृत्यु भी तो हो सकती है न!'
बात तो ठीक थी। है ना! क्या कहता बेचारा कटोरामल! उसके लालच से उसी का नुकसान हो गया था।