धनीरामजी एक अमीर व्यापारी थे।
उनकी कई मिलें थीं, कपड़े की मिलें, कागृज् की फैक्ट्रियाँ।
पैसे की उन्हें कोई कमी नहीं थी। लेकिन ढेर-सारा पैसा होने पर भी वह मन से बहुत गरीब था।
अपने ऊपर जरा-सा भी खर्चा करना पड़े तो उन्हें बहुत परेशानी होती थी।
वे पुराने कपड़े पहनते थे और चप्पलें ...चप्पलें तो उनकी घिस-घिसकर इतनी खराब हो गई थीं कि उनकी ओर देखना भी अच्छा नहीं लगता।
उनकी ये प्राचीन चप्पलें इतनी प्रसिद्ध हो गई थीं कि लोग उन्हें चप्पलों से ही पहचान लेते थे।
एक बार धनीरामजी किसी कार्यक्रम में गए।
वहाँ वे चप्पलें बाहर उतारकर अंदर गए।
और भी बहुत-सी चप्पलें थीं वहाँ। जब धनीरामजी खाना खाने के लिए उठे तो उन्होंने देखा उनकी चप्पलें नदारद थीं।
वहाँ कोई भी चप्पलें नहीं थीं, सिवाय एक जोडी नए जूतों के। उन्होंने सोचा कि उनकी प्रसिद्ध चप्पलें तो खो नहीं सकतीं।
जरूर कोई दोस्त कुछ देर के लिए पहनकर चला गया होगा और अपने जूते छोड़ गया होगा।
उन्होंने जूते पहने और खाना खाने सबके बीच पहुँच गए।
असल में ये जूते एक वकील साहब के थे। वकील साहब अपने जूते ढूँढ़ते हुए बाहर निकले।
अपने जूते धनीराम के पैरों में देखकर उन्होंने उनकी बहुत बेइज्जती की। उन पर चोरी का आरोप लगा दिया। धनीराम को भारी दंड देना पड़ा।
बाद में उनकी चप्पलें वहीं एक कोने में पड़ी मिलीं। धनीराम को लगा कि यह सब उनकी चप्पलों के कारण हुआ है।
आखिर उन्होंने अपनी चप्पलों को फेंकने का निर्णय ले ही लिया।
उन्होंने चप्पलें अपने घर के पीछे बह रही नदी में फेंक दीं। एक मछुआरे ने वहाँ मछलियाँ पकड़ने के लिए जाल बिछाया हुआ था। चप्पलें उसके जाल में अटकीं और जाल फट गया।
मछुआरे ने ये प्रसिद्ध चप्पलें पहचान लीं और उन्हें लेकर धनीराम के घर पहुँच गया।
धनीराम को उसके नुकसान की भरपाई करनी पड़ी और चप्पलें फिर उनके पास वापिस आ गईं।
धनीराम ने सोचा कि चप्पलों को जला दिया जाए। फिर बे वापिस नहीं आ पाएँगी।
चप्पले गीली थीं। उन्होंने सुखाने के लिए चप्पलें बाहर धूप में रख दीं।
तभी एक कौए ने ये पुरानी चप्पलें देखीं तो एक चप्पल चोंच में उठाकर ले गया।
पास के एक घर में कोई उत्सव चल रहा था।
बाहर एक बडे-से बर्तन में खाना पकाया जा रहा था। कौए ने चप्पल खाने के बर्तन में गिया दी और उड़ गया।
पड़ोसियों ने धनीराम की प्रसिद्ध चप्पल पहचान ली और गुस्से में वहाँ पहुँचे। धनीराम ने उनसे क्षमा माँगी।
उन्हें सबके सामने बहुत बेइज्जत होना पड़ा। इस तरह चप्पलें आखिरकार धनीराम ने सोचा कि इन बूढी चप्पलों को मिट्टी में दबा दिया जाए।
उन्होंने सबको सूचना दे दी कि उनकी चप्पलें भगवान को प्यारी हो गई हैं। वे उन्हें मिट्टी में दबाने ले जा रहे हैं। लोगों ने चैन की साँस ली।
चप्पलों की अंतिम यात्रा में बहुत-से लोग शामिल हुए और आखिर उन्हें एक मैदान में गड्ढा खोदकर दबा दिया गया। सबने ऊपर से मिट्टी डाली, जिससे कि चप्पलें बाहर न निकल सकें।
धनीरामजी खुशी-खुशी अपने घर आ गए। एक कुत्ता दूर खड़ा यह देख रहा था।
उसने मिट्टी खोदी और चप्पलें बाहर निकाल लीं। दोनों चप्पलों को मुँह में दबाए वह चप्पलों के मालिक को दूँढ़ने लगा।
आज भी वह कुत्ता चप्पलें लेकर घूम रहा है, उनके मालिक की तलाश में। क्या आप बनना चाहेंगे इन पुरानी चप्पलों के नए मालिक!