राजा बना ज्वालामुखी

नाना नानी की कहानियाँ

यह एक पुरानी लोककथा है।

फिलीपिन्स नाम देश में एक राजा राज्य करता था। वह बहुत ही बुद्धिमान था।

उसके राज्य में बढ़िया तंबाकू की खेती होती थी।

राजा अपनी फसल को और भी अच्छा बनाने के नए-नए उपाय ढदूँढ़ता था और अपने किसानों को समझाता था।

वह स्वयं खेतों में जाकर तंबाकू की किस्म की जाँच करता था।

खेतों में जाकर किसानों के साथ काम करने में कभी भी उसे शर्मिंदगी महसूस नहीं होती थी।

यही कारण था कि हर साल पहले से अच्छी फसल तैयार होती थी। दूर-दूर के राज्यों से भी व्यापारी आते थे, इस बढ़िया तंबाक्‌ को खरीदने के लिए।

एक बार राजा ने अपने राज्य के सभी पुराने और अनुभवी किसानों को अपने पास बुलाया और उनसे कहा, ' में कुछ दिनों के लिए राज्य से बाहर जा रहा हूँ।

एक आवश्यक काम निपटाना है। आप सभी अनुभवी ओर समझदार हें। मैं चाहता हूँ कि जब मैं यहाँ नहीं रहूँ, तब आप फसल को अच्छी देखभाल करें।

इस फसल के कटने के बाद, समय से दूसरी फसल रोप दीजिए।

मैं जब वापिस आर्ऊँ तो ये खेत मुझे ऐसे ही लहलहाते हुए मिलने चाहिए।' किसानों को समझाकर राजा चला गया।

किसानों ने फसल के तैयार होने पर उसे काटा और बडी मेहनत से अगली फसल की तैयारी में जुट गए।

आखिर महाराजा की आज्ञा तो माननी ही थी न! उस समय यदि राजा खुद वहाँ होता तो किसानों को देखकर उसे गर्व होता।

एक वर्ष बीत गया। इस बार फसल पिछले साल से भी अच्छी हुई। राजा अभी तक नहीं लौया था।

किसानों ने फिर मेहनत की। अगले साल फसल ओर भी बढ़िया हुई। इस तरह आठ वर्ष बीत गए। राजा नहीं लौटा।

तंबाकू की किस्म हर साल पहले से बेहतर होती जा रही थी। पूरे राज्य में हरियाली थी। प्रजा पहले से ज्यादा सुखी थी।

उनके घर, जो पहले छोटे थे, अब बडे हो गए थे। उनके पास पहले से अच्छा. खाना था, अच्छे कपडे थे पहनने के लिए। राज्य में खुशहाली थी।

अब जबकि सब किसान समृद्ध हो गए थे तो उनमें आलस्य आने लगा। वे खेतों में जाने से कतराने लगे। उनको स्वयं खेतों में काम करने में शर्मिंदगी महसूस होती थी।

उन्होंने काम नौकरों पर छोड़ना शुरू कर दिया। परिणाम यह हुआ कि तंबाकू की किस्म धीरे-धीरे खराब होने लगी। अब पत्तियों में पहले जेसी चमक नहीं थी।

धीरे-धीरे फसल की मात्रा भी कम होने लगी। लेकिन किसान खेतों में जाने को फिर भी तैयार नहीं हुए। जो खेत पहले लहलहाते थे, वे पीले-पीले बेजान दिखने लगे। पर किसानों को तो जैसे अब चिता ही नहीं थी।

व्यापार कम हो गया तो किसानों के पास पैसे की भी कमी होने लगी।

जो घर पहले बड़े और धनधान्य से भरे हुए थे, उनका सामान बेचने की जरूरत पड़ने लगी। लेकिन किसानों की आदत इतनी बिगड़ गई थी कि वे काम करने को तैयार ही नहीं थे।

तब एक दिन सुबह-सुबह एक जोर की आवाज उन्होंने सुनी। कोई व्यक्ति पहाड़ी के ऊपर खडे होकर चिल्ला रहा था।

उसको आवाज इतनी तेज थी कि धरती हिल गई। सभी किसान घबराकर बाहर निकले। सामने देखा तो पहाड़ी के ऊपर उनके महाराज खडे थे। उन्होंने क्रोध में कहा, 'तुम लोगों ने मुझे बहुत दुख पहुँचाया है।

मेरे विश्वास को तुमने तोड़ दिया है। मैंने तुमसे कहा था कि जब मैं वापिस लोदूँ तो ये खेत हरे-भरे होने चाहिएं।

लेकिन यह क्या है ? ये पीले-बेजान खेत दिए हें तुमने मुझे। मैं जा रहा हूँ और अब तभी लौटूँगा, जब तुम्हारे ये खेत पहले जैसे हरे-भरे हो जाएँगे।'

इतना कहकर राजा ने तंबाकू की कुछ पत्तियाँ तोडीं और एक पहाड़ के छेद में चला गया। सभी किसान बहुत शर्मिंदा थे। वे तुरंत अपने काम म॑ जुट गए।

वह पहाड़, जिसमें राजा चला गया था आज भी वैसे ही खड़ा है। उसमें से कभी-कभी धुँआ निकलता है।

लोगों का मानना है कि जब भी राजा अंदर बैठकर तंबाकू पीता है, ये धुँआ निकलता है। लेकिन वे डरते हैं कि यदि राजा के क्रोध का ज्वालामुखी फट गया तो कया होगा!