एक नदी में बहुत-सी मछलियाँ और एक कछुआ रहते थे।
कछुआ अक्सर पानी से बाहर आकर आकाश की ओर देखा करता था। उसे आकाश में उड़ने वाले पक्षी बहुत अच्छे लगते थे।
वह मछलियों से कहता था, “काश! में भी आकाश में दूर तक उड़ सकता।
इन पक्षियों की तरह कहीं भी आ-जा सकता।'
मछलियाँ हमेशा उसे समझाती थीं, 'कछुए भाई, ऐसी बात मत सोचो जो नहीं हो सकती।
' 'देखना, एक दिन मैं तुम्हें उड़कर जरूर दिखाऊँगा।' वह बडे विश्वास से कहता।
तब मछलियाँ उसे समझातीं, 'इस अजीब-सी इच्छा के कारण अपना नुकसान मत करा लेना।' लेकिन कछए को मछलियों की बातें समझ में नहीं आती थीं।
वह तो बस उड़ने के ही सपने देखा करता था।
एक दिन वह पानी से बाहर निकलकर रेत पर आराम कर रहा था।तभी उसने दो बगुलों को वहाँ बैठे हुए देखा। वह उनके पास गया और बोला, 'नमस्ते, मैं कछआ हूँ, यहाँ पानी में रहता हूँ। नदी के किनारे आपका स्वागत है।'
बगुले बडे खुश हुए। बोले, 'हम बगुले हैं। दूर एक और नदी हे। उसके पास ही रहते हैं। मछलियाँ खाते हैं और आपकी इस नदी तक घूमने आए हैं।'
इस तरह कछुआ और बगुलों की जल्दी ही दोस्ती हो गई। उसके बाद वह अक्सर बगुलों से मिलने लगा। उनसे बात करना उसे अच्छा लगता था।
वे दूर-दूर तक घूमकर आए थे। उनके किस्से सुनकर कछए की उड़ने की इच्छा और भी तीब्र हो जाती थी।
एक दिन हिम्मत करके उसने अपने मन की बात बगुलों को बताईं। बगुले पहले तो हैरान हुए। फिर उन्हें लगा कि कछआ उनका दोस्त है। इसलिए उसकी मद॒द् करनी चाहिए।
वे कछुए से बोले, 'एक उपाय है। लेकिन तुम्हें हमारी कुछ बातों का ध्यान रखना होगा।
कछुआ खुशी से उछल पड़ा। बोला, “ठीक है, मैं सब कुछ मानने को तैयार हूँ।
तब एक बगुला लकड़ी का एक छोटा-सा मजबूत डंडा ढूँढकर लाया। उसने कछुए को समझाया, 'तुम इस डंडे को अपने मुँह से पकड लेना।
हम दोनों एक-एक ओर से डंडे को अपनी चोंच में दबा लेंगे। तुम डंडे को मजबूती से पकड़े रहना। तब हम तुम्हें लेकर उड़ेंगे और एक चक्कर लगाकर वापिस आ जाएँगे।
अब दूसरा बगुला बोला, “दो बातों का विशेष ध्यान रखना। हिलना मत और बोलना मत। हिले तो हम तुम्हें सम्हाल नहीं पाएँगे और बोले तो लकड़ी तुम्हारे मुँह से छूट जाएगी और तुम गिर पड़ोगे।'
कछुआ तैयार हो गया।
बगुलों ने जो योजना बनाई थी उसी के अनुसार वे उडे। बगुलों ने बड़ा सा एक चक्कर लगाया। कछुआ बहुत खुश था।
जब वे नदी के ऊपर से गुजर रहे थे, कछुए ने नीचे देखा। उसकी दोस्त मछलियाँ आश्चर्य से कछुए को ऊपर आकाश में उड़ता हुआ देख रही थीं।
जब कछुए ने मछलियों को देखा तो वह भूल गया कि बगुलों ने उसे चुप रहने को कहा है।
वह चिल्लाकर बोला, 'देखो मेरा कमाल।' लेकिन ऐसा करने से डंडा उसके मुँह से छूट गया। वह तेजी से नीचे गिरने लगा। उसे डर लग रहा था। उसने डर के मारे आँखें बंद कर लीं।
तभी जोर से आवाज हुई- “छपाक्' और कछुआ पानी में गिरा। ह मछलियाँ बोलीं, 'देखा, आखिर इस पानी ने ही तुम्हारी जान बचाई।
अगर जमीन पर गिर जाते तो ?” कछआ भी समझ गया था कि उसे पानी में रहने के लिए ही बनाया गया है। उड़ने के लिए नहीं।