गुड्डू के बहुत सारे दोस्त थे।
मीनू और उसका भाई सोनू, आँचल और उसका भाई शिवम्, चीनू, टिंकू, सौरभ और भी कितने सारे। गुड्डू के पास बहुत-से खिलोने थे।
तरह-तरह की कारें, चलने वाला रोबोट, अंतरिक्ष-यान, बसें, घर बनाने के ब्लाक्स, ट्रेनें और पता नहीं क्या-क्या।
वह अपने खिलौनों से सबको खेलने देता था।
हाँ, कोई उसकी चीजों को छेडे या तोडे-फोडे तो उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगता था।
इसीलिए उसने अपने खिलौनों को दो भागों में बाँट दिया था। एक डिब्बे में वे खिलौने थे, जिससे छोटे बच्चे खेल सकते थे।
बेटरी से चलने वाले अच्छे खिलोने उसने अलमारी में सँभालकर रखे थे।
मीनू का भाई सोनू और आँचल का भाई शिवम् जरा शरारती थे। सोनू और शिवम् दोनों एक ही उम्र के थे-तीन वर्ष के।
सोनू को आदत थी हर चीज को छूने की और खोलकर देखने की। शिवम् भी था शरारती, पर अपनी आँचल दीदी का कहना मान लेता था।
लेकिन सोनू को कुछ भी मना करें तो बस जोर-जोर से रोने-चिल्लाने लगता था।
गुड्डू खाली समय में अच्छी-अच्छी पेंटिंग्स बनाता था।
उसे तबला बजाना भी अच्छा लगता था। अभी वह सीख रहा था, इसलिए थोड़ा-सा ही बजाना आया था उसे। लेकिन वह कोशिश जरूर करता था अच्छा बजाने की।
सोनू का घर गुड्डू के घर के एकदम बराबर में था। वह गुडडू के साथ सब खेल खेलता था। शिवम् सिर्फ शाम को आता था, अपनी दीदी के साथ।
गुड्डू की मम्मी कई बार सोनू से कहती थीं कि चलो दोनों बेठकर कागज पर कुछ बनाओ। सोनू थोड़ी देर काम करता था, फिर उस कागज को मरोड॒कर इधर-उधर डाल देता था।
एक बार शिवम् की मम्मी गुड्डू के घर आईं। गुड्डू ने अपनी अच्छी-अच्छी पेंटिंग्स को दीवार पर सजाया हुआ था।
वे शिवम् को बुलाने आई थीं, पर पेंटिंग्स को देखकर रुक गईं।
फिर उन्होंने शिवम् को बुलाया और बोलीं, 'देखो बेटा, गुड्डू ने कितनी अच्छी चित्रकारी की हे। उसके साथ खेलने आते हो तो और बातें भी सीखा करो।'
उन्होंने सोनू से भी यही बात कही। सोयू ने शिवम् की ओर देखकर गंदा-सा मुँह बनाया और भाग गया।
लेकिन नन्हे शिवम् को मम्मी की बात अच्छी लग गई। मम्मी के साथ घर पहुँचते ही उसने पेंसिल और कागज माँगा।
फिर एक लड़का बनाया। एक गेंद बनाई और कुछ फूल बनाए। फिर उसमें रंग भरे।
अगले दिन शाम को वह गुड्डू के घर अपनी पेंटिंग लेकर आया। सभी ने उसकी तारीफ की। उसकी लगन सचमुच तारीफ के लायक थी। मम्मी की बात उसने मानी और उसके बाद बहुत-सी अच्छी पेंटिंग्स बनाईं।
और सोनू, वह पूरे दिन गुड्डू के साथ रहकर भी ज्यादा सीख नहीं पाया।
यही अंतर होता है समझदार और जिद्दी बच्चों में। कुछ सीखना है तो कहीं से भी सीखा जा सकता है-अपने दोस्तों से भी।