यह उस समय की कहानी है जब मनुष्य को घर बनाना नहीं आता था।
उसे बाहर खुले आकाश के नीचे सोना पड़ता था।
ठंड हो, बारिश हो या ज्यादा गर्मी हो, हर मौसम में बहुत मुश्किलें होती थीं उसे।
तब उसने अपना अलग घर बनाने की बात सोची। उसने खरगोशों को मिट्टी के ढेर के अंदर घर बनाते हुए देखा था।
उसने अपने लिए भी ऐसा ही घर बनाया। लेकिन मुश्किल यह थी कि इस घर की छत बार-बार उसके सिर पर गिर पड़ती थी। मिट॒टी का यह घर मजबूत नहीं था।
तब उसने एक ऐसा घर बनाने का तरीका ढूँढ़ा, जिसकी छत बार-बार न गिरे।
इसीलिए उसने एक पेड की शाखाओं को थोड़ा-थोड़ा काटकर, पूरे पेड़ को एक छतरी का आकार दिया।
उस पेड़ की छतरी के नीचे वह आराम से सो सकता था।
लेकिन इस घर में भी वह ठंड, बारिश और गर्मी से पूरी तरह नहीं बच पाता था।
उसे एक ऐसा घर चाहिए था, जो कि मजबूत भी हो और चारों ओर से बंद भी हो।
लेकिन ऐसा घर बनाना तो उसे आता ही नहीं था।
एक दिन वह जंगल के पास वाली नदी के किनारे पर घूम रहा था।
वहाँ कुछ गीली मिट्टी थी। मिट्टी में कुछ छोटे-बडे पत्थर पडे हुए थे। उसे औजार बनाने के लिए पत्थरों की जरूरत थी।
उसने गीली मिट्टी में पड़े हुए एक पत्थर को उठाना चाहा।
लेकिन वह नहीं उठा सका, क्योंकि पत्थर गीली मिट्टी में आधा घँसा हुआ था और चिपक गया था। पत्थर को मिट्टी से निकालने के लिए मनुष्य को काफी मेहनत करनी पड़ी।
लेकिन इस घटना से उसने एक बहुत महत्त्वपूर्ण बात सीख ली। उसने सोचा, “यदि पत्थर को मिट्टी में डाल दिया जाए तो वह मजबूती से चिपक जाता है।
इसका अर्थ यह हुआ कि यदि दो पत्थरों को एक-दूसरे के ऊपर चिपकाना हो तो बीच में गीली मिट्टी लगा देनी चाहिए।
मनुष्य ने यह प्रयोग करके देखा और उसका प्रयोग सफल भी हुआ।
बस, फिर तो उसने एक के ऊपर एक पत्थर लगाए और ऊँची दीवार बना दी। इस तरह से उसने दीवारें बनाना सीखा।
फिर उसने तीन ओर दीवारें बनाकर एक कमरा बनाया और छत बनाने के लिए पेड की टहनियाँ और पत्ते डाल दिए।
और इस तरह बनकर तैयार हुआ मनुष्य का पहला घर।