यह उन दिनों की बात है, जब मनुष्य को कपड़े बनाना नहीं आता था।
अपने शरीर को ढकने के लिए वह पेडों के पत्ते बाँध लेता था। लेकिन वे आरामदेह नहीं थे। चुभते थे और जल्दी ही सूख जाते थे।
तब उसने ईश्वर से प्रार्थना की, 'हे प्रभु, ऐसा कोई उपाय बताइए, जिससे मैं अपने शरीर को ढक सकूँ।
साथ ही ठंड से भी बच सकँ।'
ईश्वर ने मनुष्य की प्रार्थना सुन ली। ईश्वर प्रकट हुए और बोले,'मैं चाहता हूँ कि तुम कपड़ा बुनना सीखो। लेकिन मैं तुम सबको कपड़ा बुनना नहीं सिखा सकता। इसीलिए मैं तुममें से किसी एक गुणवान कन्या को अपने साथ ले जाऊँगा।
उसे मैं कपड़ा बुनने के सभी हुनर सिखाऊंगा। फिर वह धरती पर आकर तुम सभी को यह कला दिखा देगी।'
उन्होंने एक कन्या को चुना, जिसका नाम था रेणुका। वे उसे अपने उड़ने वाले रथ में बैठाकर ले गए।
रेणुका ने बड़ी मेहनत से कपड़ा बुनना सीखा। वह बहुत मन लगाकर बुनाई का काम करती थी और अत्यंत सुंदर कपडे बुनती थी।
जब उसने इस कला को पूरी तरह सीख लिया तो वह अपने बुने हुए कपड़े और करघा लेकर रथ में बेठ गई। रथ उड़कर नीचे धरती की ओर आ रहा था।
तभी जोर से हवा चली और उसके सारे कपडे उड़कर दूर-दूर बिखर गए। वे धरती के अलग-अलग हिस्सों में गिरे।
जिन-जिन मनुष्यों को वे कपडे मिले, उन्हें कपड़ा बुनने की कला आ गई। क्योंकि ये कपडे ईश्वर की देन थे।
ये मनुष्य बुनकर कहे जाने लगे।
रेणुका ने भी अपने गाँव में आकर यह कला सबको सिखाई। उसका गाँव सबसे श्रेष्ठ बुनकरों का गाँव बन गया।
तो इस तरह मनुष्य ने सीखी कपड़ा बुनने की कला।