एक था लालचंद और एक था डालचंद।
दोनों के घर में आम का एक-एक पेड़ था, जिसमें मीठे आम लगते थे।
लालचंद एक बुद्धिमान व्यक्ति था। सबकी सहायता करना उसे बहुत अच्छा लगता था।
अपने पेड़ के आम वह पडोसियों के साथ बाँटकर खाता था। और डालचंद, वह था स्वार्थी और लालची।
एक बार लालचंद ने एक साधु की बहुत सेवा की। साधु ने प्रसन्न होकर उसे एक मंत्र दिया।
वे बोले, “यदि कोई व्यक्ति उस मंत्र को आम के पेड् के नीचे खडे होकर मन में दोहराए तो पेड पर तुरंत बड़े-बड़े मीठे आम उग जाते हैं।
बड़ा ही करामाती मंत्र है यह।' लालचंद ने साधु बाबा को धन्यवाद दिया और प्रणाम करके अपने घर आ गया।
फिर अपने आम के पेड़ के नीचे खड़ा होकर वह मंत्र दोहराने लगा।
एक चमत्कार हुआ और पेड़ पर सच में बड़े-बड़े और रसीले आम उग गए।
लालचंद ने आम तोड़े और जाकर कुछ आम पड़ोसियों में बाँट दिए और कुछ अपने खाने के लिए रख लिए।
वह अक्सर ऐसा ही करता था। गरीबों को वह ज्यादा मात्रा में आम दे देता था। सब उसको आशीर्वाद देते थे।
डालचंद को इस मंत्र के बारे में किसी तरह पता चल गया। वह लालचंद के पास आया और बोला-
दोस्त, क्या तुम मुझे अपना करामाती मंत्र बता सकते हो।' मैं भी आम उगाकर गरीबों को खाने के लिए देना चाहता हूँ।
मैं चाहता हूँ कि उनकी सहायता करूँ और उनका आशीर्वाद पाऊँ।'
लालचंद को डालचंद के लालच के बारे में पता था। उसने मना किया।
पर डालचंद् ने बहुत विनती की। तब लालचंद ने कहा, 'मैं तुम्हें मंत्र बता तो दूँगा। लेकिन तुम्हें एक वचन देना होगा।'
डालचंद हर तरह से तैयार था। वह बोला, “मैं वचन देता हूँ. बताओ मुझे मंत्र
“पहले सुन तो लो भाई कि क्या वचन देना है?” लालचंद बोला।
'हाँ-हाँ, बताओ।' लालचंद ने झट से कहा।
“इस मंत्र का प्रयोग तुम अपने स्वार्थ के लिए नहीं करोगे। साथ ही इसके उपयोग से तुम अपना लाभ नहीं सोचोगे।
एक और बात यदि तुमने इस मंत्र के विषय में कोई भी झूठ बोला तो इसकी शक्ति सदा के लिए चली जाएगी।
और तुम मंत्र भूल जाओगे।'
डालचंद ने वचन दिया कि वह इन सब बातों का ध्यान रखेगा। तब लालचंद ने उसे मंत्र बता दिया।मंत्र मिलते ही डालचंद के अंदर स्वार्थ और लालच पैदा हो गया।
वह मंत्र की सहायता से ढेर सारे आम उगाता था और फिर उन्हें बाजार में ऊँचे दामों में बेचता था। इस तरह उसने काफी रुपए कमा लिए।
इस करामाती मंत्र के बारे में राजा को पता चला।
उन्होंने डालचंद को दरबार में बुलाया। बे बोले, 'तुमने यह मंत्र कहाँ से सीखा ?' डालचंद को राजा से अपनी प्रशंसा सुनने की इच्छा हुई।
इस लालच में वह लालचंद को दिए हुए सब वचन भूल गया।
वह बोला- 'महाराज! मैंने वर्षो तक अध्ययन करके यह मंत्र खोज निकाला है। यह मेरी अपनी मेहनत का परिणाम है।'
महाराज बहुत प्रसन्न हुए और बोले, 'हम चाहते हैं कि तुम हमारे सामने इस मंत्र का प्रयोग करके बताओ।'
डालचंद बहुत खुश था कि स्वयं महाराज उससे कुछ चाहते हें। वह बोला, "महाराज, आपके बाग का जो सबसे अच्छा आम का पेड हो वहाँ मुझे ले चलिए।”
राजा, डालचंद और बहुत से दरबारी पेड के नीचे पहुँचे। वे बेसब्री से पेड पर आम उगने का इंतजार कर रहे थे। सबकी दृष्टि ऊपर की ओर थी, आम के पेड की ओर।
डालचंद ने आँखें बंद करके मंत्र पढ़ना चाहा। पर वह मंत्र भूल गया था।
उसने फिर मंत्र पढ़ना चाहा, लेकिन उसे याद ही नहीं आया। बार-बार प्रयास करने पर भी जब कुछ नहीं हुआ तो महाराज क्रोधित हो गए।
डालचंद को तब याद आया कि उसने महाराज से झूठ बोला था। इसीलिए मंत्र की शक्ति चली गई।
उसे बहुत पछतावा हुआ। लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता था। आखिर उसने महाराज से क्षमा माँगी।
महाराज ने क्रोधित होकर कहा, ' तुमने हमें मूर्ख बनाने का प्रयास किया है। हमारा समय बर्बाद किया है। इसका दंड तुम्हें अवश्य मिलेगा।'
अपने लालच के कारण डालचंद को भारी दंड झेलना पडा। साथ ही वह मंत्र की शक्ति को भी सदा के लिए गँवा बेठा।
तो ऐसा होता है लालच का फल!