एक लकड़हारा और उसकी पत्नी जंगल में लकडियाँ काटने गए।
जब वे बहुत थक गए तो एक पेड के नीचे कुछ देर आराम करने के लिए बेठ गए।
लकड़हारा ने अपनी कुल्हाड़ी पेड़ के तने में लगा दी।
कुल्हाड़ी शायद ठीक से पेड में धँसी नहीं थी। वह 'धड़ाम' से जमीन पर गिरी और गायब हो गई। लकड़हारा घबरा गया।
यह उसकी नई कुल्हाड़ी थी। उसने जमीन पर ढूँढ़ना शुरू किया। वहाँ घास-फूस काफी थी।
थोड़ी घास हटाने पर उसने देखा कि वहाँ एक बहुत बड़ा-सा बर्तन गढ़ा हुआ था। उनकी कुल्हाड़ी उसी बर्तन में गिर गई थी।
यह बर्तन इतना गहरा था कि उसमें लकड़हारा कूदे तो पूरा समा जाए।
लकड़हारा और उसकी पत्नी ने मिलकर बर्तन को बाहर निकाला। उन्होंने बर्तन उलया कर दिया।
तब बर्तन में से एक की जगह दो कुल्हाडियाँ गिरीं। बिलकुल एक जैसी। 'अरे वाह! ये दूसरी कुल्हाड़ी कहाँ से आई ?' लकड़हारा खुशी से चिल्लाया।
'लगता है यह कोई करामाती बर्तन है!' उसकी पत्नी ने कहा।
तभी बर्तन के अंदर से आवाज आई, 'यह एक जादुई बर्तन है। इसमें जो डालोगे वह दुगुना हो जाएगा।
लेकिन सावधान, इसका प्रयोग तुम बस पाँच बार और कर सकते हो।'
'पाँच बार, ठीक है।' दोनों ने सोचा।
उनके पास एक बोरी अनाज था। उन्होंने वह बोरी बर्तन में डाल दी और अंदर से निकलीं दो बोरियाँ।
लकड़हारे ने कुछ पैसे बचाकर रखे थे। उसने वे पैसे उसमें डाल दिए और अंदर से निकले दोगुने पैसे।
' अरे वाह! लकड़हारा खुश होकर बोला। अभी तीन मौके और बचे थे।
लकड़हारे की पत्नी के पास कुछ गहने थे। वह गहनों की पोटली लेकर आई और उसे खोला।
फिर उसमें से गहने निकालकर एक साथ सब गहने अंदर डाल दिए और फिर चमत्कार हुआ और गहने दुगुने हो गए।
गहनों को चमक देखकर वह बहुत खुश हो गई। गहने बर्तन से बाहर निकालने की जल्दी में वह बर्तन का जादू भूल गई।
वह गहने निकालने के लिए खुद बर्तन के अंदर कूद पड़ी और पता है क्या हुआ। अंदर एक की जगह दो स्त्रियाँ हो गईं। लकड़हारे की दो पत्नियाँ।
लकड़हारे ने जब यह देखा तो वह बेहद परेशान हो गया। वह सिर पकड़कर बैठ गया और रोने लगा।
पत्नियाँ आपस में लड़ने लगीं, 'मैं असली हूँ।' 'नहीं, में असली हूँ।'
तब उसे एक उपाय सूझा। उसने दोनों स्त्रियों को बाहर निकाला और खुद बर्तन के अंदर कूद पड़ा।
तभी बाहर निकले दो लकड़हारे। अब कोई समस्या नहीं थी। वहाँ दो लकड़हारे थे और दो पत्नियाँ थीं।
लेकिन अभी तक उन्होंने जो कुछ दुगुना किया था, वह उन्हें आधा-आधा बाँटना पड़ा।
करामाती बर्तन का उन्हें आखिर कोई फायदा नहीं हुआ।
और यह सब हुआ लकड़हारे की पत्नी की जल्दबाजी की वजह से। इसीलिए कहते हैं भेया, 'जल्दी का काम, सब कुछ तमाम।'