तो पूछिए प्रश्न?

नाना नानी की कहानियाँ

एक छोटा-सा द्वीप था।

द्वीप यानि समुद्र के बीच जमीन का एक डुकड़ा।

इस ट्वीप पर कुछ लोग रहते थे। सबके पास अपने घर थे और खेती करने के लिए जमीन थी।

सब खुश थे। ये सभी एक-दूसरे को पहचानते थे।

फिर वे धीरे-धीरे बढ़ने लगे। कैसे ? तो सुनो, पहले जो लोग वहाँ रहते थे उनके घरों में छोटे बच्चे हुए।

वे बच्चे बड़े हुए, फिर उनके घरों में बच्चे हुए।

वे बच्चे बड़े हुए, फिर उनके घरों में बच्चे हुए, फिर उन बच्चों के बच्चे बडे हुए, फिर उनके बच्चे हुए।

इस तरह धीरे-धीरे वहाँ इतने लोग हो गए कि सब लोग अब बाकी सभी को नहीं पहचानते थे।

वे अपने-अपने समूहों में रहने लगे। ये बच्चे अपने इतिहास और अपने द्वीप के बारे में ज्यादा जानते ही नहीं थे।

तब द्वीप के बुजुर्गों ने मिलकर तय किया कि बच्चों को किसी के पास पढ़ाई के लिए भेजा जाना चाहिए।

उन्होंने दो समझदार अध्यापक चुने। अब आधे बच्चे अध्यापक एक के पास जाने लगे और बाकी आधे अध्यापक दो के पास।

दोनों स्कूलों के पढ़ाने के तरीके में बहुत अंतर था।

स्कूल एक के बच्चों को स्कूल में चुपवाप रहकर वही सब पढ़ना होता था, जो उनके अध्यापक पढाते थे।

वे तभी बोल सकते थे, जब उनके अध्यापक कोई प्रश्न पूछें। स्कूल-एक की कक्षाओं में पूरा अनुशासन रहता था।

यहाँ के अध्यापक एक का कहना था, 'सब कुछ पता है हमें, बस बच्चों को सिखाना हेै।'

लेकिन स्कूल दो का तरीका कुछ अलग था। वहाँ बच्चे भी अध्यापक से प्रश्न पूछ सकते थे।

और जरूरी नहीं होता था कि अध्यापक को हर उत्तर आता हो। “इसलिए वे सब मिलकर उस प्रश्न का उत्तर खोजते थे।

वहाँ के अध्यापक दो का कहना था, 'हम कोई न कोई नई बात खोजते हैं हर दिन।'

इस तरह पूरे द्वीप के लोग दो समूहों में रहने लगे। कुछ दिनों बाद द्वीप को आधा-आधा बाँट दिया गया और बीच में एक दीवार बना दी गई।

दोनों हिस्सों को “सर्वज्ञाता धरती' और 'जोजकर्ता धरती' कहा जाने लगा।

काफी वर्ष बीत गए। अब '“सर्वज्ञाता धरती” के लोगों के सामने भारी समस्या खड़ी होने लगी।

वहाँ लोगों की संख्या इतनी बढ़ गई कि लोगों के सोने के लिए भी जगह नहीं बची।

वे परेशान रहने लगे। एक दिन सर्वज्ञाता धरती के एक व्यक्ति ने कहा, 'सब कुछ पता हे हमें कि इस दीवार के दूसरी ओर बहुत-सी जमीन है। चलो इस दीवार को तोड़ दें।'

बस, सबने मिलकर दीवार को गिरा दिया। तब दोनों धरतियों के लोगों ने पहली बार एक-दूसरे को देखा।

खोजकर्ता धरती के लोगों ने देखा कि सर्वज्ञाता धरती के सब लोग एक जैसे दिखते हैं।

सबके सोचने का ढंग एक हे। कपडे पहनने का तरीका एक जैसा है।

सबके हाव-भाव एक जैसे हैं। वे आज भी वैसे ही कपडे पहने हुए थे, जो कभी उनके दादा के दादा के दादा पहनते थे।

लेकिन खोजकर्ता धरती के लोग ऐसे नहीं थे। वे सब एक-दूसरे से अलग दिखते थे।

यहाँ जगह की भी कमी नहीं थी। यहाँ के लोगों ने पूरी धरती को बडे अच्छे तरीके से व्यवस्थित किया हुआ था। यहाँ स्कूल थे, अस्पताल थे।

हवाई अड्डा था, सबके अपने घर और घरों में एक या दो बच्चे थे। सब खुशहाल थे।

सर्वज्ञाता धरती के लोगों ने कहा, 'सब कुछ पता है हमें, लेकिन ये इन्होंने कैसे किया? यह तो हमें नहीं पता।'

तब खोजकर्ता धरती का एक मनुष्य बोला, 'हम खोजते हैं हर दिन एक नई बात।

इसीलिए हमने बहुत-सी नई बातें सीखीं। हम केवल इस धरती पर ही नहीं रहे। बल्कि हमारे बच्चे दूर-दूर देशों में घूमकर आए हैं।

वहाँ से नई बातें सीखकर उन्होंने हमें सिखाया है यह सब, यही कारण है कि हम आज भी खुशी से रह रहे हैं। हमारे यहाँ सभी को प्रश्न पूछने की आजादी है।'

तब “सर्वज्ञाता धरती' के लोगों को महसूस हुआ कि सच में वे कितने पीछे रह गए थे। उन्हें पता चला कि प्रश्न पूछना और नई बातें सीखना अच्छी बात है। प्रश्न पूछने पर ही आप सीख सकते हैं।

इस तरह उन्होंने अपने आपको बदलने की कोशिश की। धीरे-धीरे पूरे द्वीप के लोग व्यवस्थित ढंग से रहने लगे।

तो यह था किस्सा 'सब कुछ पता है हमें' और 'खोजते हैं हर दिन का।

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