छ: वर्ष का एक बच्चा था मोनू।
वह बहुत ही शर्मीला था। उसका शर्मीलापन इतना ज्यादा था कि उसे खुद ही अच्छा नहीं लगता था।
उसके घर जब कोई मेहमान आता था तो वह जाकर अपने कमरे में अलमारी के पीछे छिप जाता था और अगर किसी दिन उसे सबके सामने आना पडे तो वह बिलकुल शांत बैठा रहता था।
किसी ने अगर उसका नाम पूछ लिया तो सिर को झुकाकर ऐसे दिखाता था कि उसने कुछ सुना ही नहीं और फिर भागकर बाहर चला जाता था।
उसके इस शर्मीलेपन से उसके माता-पिता भी बहुत परेशान थे।
वे उसे बहुत समझाते थे कि मेहमानों के सामने बोलना चाहिए। उनके प्रश्नों का उत्तर देना चाहिए। अच्छे बच्चे ऐसा ही करते हैं। लेकिन मोनू कितनी ही
कोशिश करे वह बोल ही नहीं पाता था। सब कहते थे, 'तुमसे ज्यादा तो एक छोटी चिडिया बोल लेती है।
इतना शर्मीला होना अच्छी बात नहीं है। तुम अब बडे हो गए हो। छ: साल के ... समझे।'
ये सब बातें सुनते-सुनते मोनू एकदम परेशान हो गया था। ' आखिर क्या करूँ मैं ?' वह अक्सर सोचता था- 'सब कहते हैं कि मुझसे ज्यादा तो एक चिडिया बोल सकती है।
'यह कौन-सी चिडिया है आखिर ? काश, मैं इस चिडिया से ही बोलना सीख पाता।' वह दुःखी होकर कहता।
एक दिन वह खिड़की के पास बैठकर बाहर खेलते बच्चों को देख रहा था।
तभी एक छोटी-सी चिडिया उसके सामने आकर बैठ गई। उसकी चोंच लाल रंग की थी और पंख रंग-बिरंगे और चमकदार थे। मोनू ने ऐसी चिड़िया पहले कभी नहीं देखी थी।
वह चिडिया को ध्यान से देखने लगा। फिर बोला, 'छोटी चिडिया, क्या तुम मुझे बोलना सिखाओगी ?' और तब उसने एक बारीक-सी मीठी आवाज सुनी, 'हाँ-हाँ, क्यों नहीं, सिखाऊँगी न!'
मोनू ने देखा कि चिड़िया सच में बोल रही थी। 'बोलने वाली चिडिया!' वह खुशी से उछल पड़ा। 'लेकिन तुम तो बोलना जानते हो।' चिडिया बोली।
'सब कहते हैं कि मैं बहुत शर्मीला हूँ।' मोनू ने कहा।
“तुम अगर मेरे साथ बातें कर सकते हो, तो औरों के साथ क्यों नहीं बोलते ?' चिड़िया ने पूछा। “मुझे नहीं पता। मेरे मुँह से आवाज ही नहीं निकलती।' मोनू बोला।
अच्छा मुझे अपने बारे में कुछ बताओ।' चिडिया ने कहा।
मोनू उसे बताने लगा, 'मेरा नाम मोनू है। मैं छ: वर्ष का हूँ और पहली कक्षा में पढ़ता हूँ। मेरा एक बहुत पक्का दोस्त है राजू। वह भी छ: वर्ष का हे।
मेरे घर में मेरी मम्मी हैं, पापा हैं और एक छोटी बहन है। मेरी बहन का नाम है तनु। मोनू और तनु अच्छा लगता है न! तनु 4 साल की है। वह फ्राक में बहुत अच्छी लगती है, एकदम गुड़िया जैसी।
वह बहुत बोलती है। सबके साथ झट-से दोस्ती कर लेती है और फिर बोलती जाती है, बोलती जाती है...।'
'बस! बस! मोनू बस!' चिडिया ने बीच में टोका, 'कौन कहता है कि तुम बोल नहीं सकते। मुझे तो लगता है कि तनु से ज्यादा तुम बोलते हो।'
तब मोनू ने ध्यान दिया, पिछले कई मिनट से बस वही बोल रहा था। चिडिया तो सुन ही रही थी। उसे विश्वास नहीं हुआ कि यह वही था, जो बोल रहा था!
उस दिन के बाद कई दिन तक चिड़िया रोज आती रही। मोनू ने उसे नाम भी दे दिया था, चिंकी। चिंकी और मोनू की दोस्ती बड़ी गहरी हो गई थी।
धीरे-धीरे मम्मी-पापा ने मोनू के व्यवहार में अंतर महसूस किया। उसका शर्मीलापन कम हो रहा था। वह अब सबसे मिलता था और बातें भी करता था। सच में, एक चिडिया ने ही उसे बोलना सिखाया था।
फिर एक दिन आया जब सबने उसे 'शर्मीला' कहना छोड दिया। हुआ यूँ कि उसके पापा के एक दोस्त आए थे। उन अंकल से मोनू ने बड़े ही अच्छे ढंग से बातें कीं।
अंकल पापा से बोले, 'आपका बेटा बड़ा ही समझदार है। कितनी अच्छी बातें करता है।' बस उस दिन ने उसे 'शर्मीला' शब्द से छुटकारा मिल गया।
चिकी खुश थी क्योंकि उसका दोस्त अब खुश रहता था। चिंकी के अलावा अब मोनू के और भी बहुत से दोस्त थे। वे सब साथ मिलकर खेलते थे।
लेकिन अब भी, जब कभी मोनू का मन करता था, वह धीरे-से बुलाता था, 'चिकी, प्यारी चिकी, आओ न!' और वह जादुई चिडिया झट से आ जाती थी।
फिर दोनों बहुत देर तक बातें करते रहते थे। आखिर अब मोनू “'शर्मीला बच्चा' नहीं था। वह अब हो गया था 'समझदार बड़ा बच्चा!