एक बडी-सी मक्खी आराम कर रही थी।
तभी उसे अपने पैरों में गुदगुदी महसूस हुई। मक्खी ने देखा कि एक छोटी-सी चींटी उसके पैरों के ऊपर से जा रही थी।
मक्खी को बहुत गुस्सा आया। वह जोर से चिल्लाई, 'ए चींटी, दिखाई नहीं देता। मैं आराम कर रही हूँ। तेरी यह हिम्मत कि मुझे आराम करते समय परेशान करने आ गई।'
चींटी ने कहा, 'माफ कीजिए, मैं आपको परेशान करना नहीं चाहती थी।
वो तो मैं खाना इकट्ठा करने निकली थी। गलती से आपके पैरों से टकरा गई।'
मक्खी को गुस्सा आया कि एक छोटी-सी चींटी उसे पलटकर जवाब दे रही है। वह बोली, 'चुप हो जा! तू इतनी छोटी है कि मैं पंख हिलाऊँ तो हवा से ही तू दूर जा गिरेगी।'
अब चींटी को भी गुस्सा आ गया। वह बोली, 'मक्खी, माना कि तुम बड़ी हो। लेकिन बुद्धि तुममें बिलकुल नहीं है। हम चींटियों को
देखो। हम घर बनाती हैं। फिर खाना इकट्ठा करती हैं। सबके साथ मिल-बाँटकर खाती हैं और तुम, तुम तो कभी कूड़े के ढेर पर बैठी रहती हो, कभी खाने के सामान पर।
सारी बीमारियाँ तुम ही फैलाती हो। कोई तुम्हें पसंद नहीं करता। जब देखो, खाली बैठी रहती हो।
तुमने हमें कभी खाली बैठे देखा है क्या ? हमसे कुछ सीखो। हममें कितनी एकता और प्रेम है। आकार में बड़ा होने से ही सब कुछ नहीं होता। समझी , बुद्धि भी बड़ी होनी चाहिए।
ऐसा कहकर चींटी चीनी के दाने को मुँह में दबाकर आगे चली गई और मकक्खी वापिस आराम से बैठ गई।