दो पड़ोसी राज्यों के राजाओं में आपस में शत्रुता थी।
एक राज्य का नाम था चंद्रलोक। दूसरे का नाम था सूर्यनगरी।
चंद्रलोक के राजा का नाम था चंद्रसेन और सूर्यनगरी के राजा का नाम था सूर्यकुमार।
एक बार चंद्रलोक के राजा को सूर्यनगरी के राजा ने बंदी बना लिया।
राजा को छोड़ने के बदले में बहुत सारे धन की माँग की गई। चंद्रसेन ने अपनी रानी को संदेश भेजा कि राज्यकोष से धन निकालकर भेज दिया जाए।
लेकिन उसकी पत्नी की ओर से कोई उत्तर नहीं आया।
कुछ दिनों के बाद राजा सूर्यकुमार के दरबार में एक बाँसुरी-वादक आया। उसने इतनी मधुर बाँसुरी बजाई कि राजा मुग्ध हो गए।
उन्होंने बाँसुरी-वादक से आग्रह किया कि वह कुछ दिन अतिथि बनकर महल में रुके। बाँसुरी-वादक ने राजा की इच्छा को पूरा किया और महल में रुक गया।
पाँच दिन बाद जब वह अपने देश वापिस जा रहा था, तब राजा सूर्यकुमार ने उससे कहा, 'हम आपको अपनी ओर से कोई उपहार देना चाहते हैं। आप अपनी इच्छा हमें बताएँ।'
बाँसुरी-वादक ने कहा, 'महाराज, मेरा देश बहुत दूर है। रास्ता लंबा है। मैं चाहता हूँ कि आप मुझे सेवा करने के लिए एक गुलाम दे दें।' उसने गुलाम के रूप में चंद्रसेन को माँग लिया।
राजा ने ऐसा ही किया। बाँसुरी-वादक चंद्रसेन को लेकर चल दिया। जल्दी ही वे सूर्यनगरी से बाहर निकल गए।
चंद्रलोक की राजधानी के पास पहुँचकर अचानक बाँसुरी-वादक गायब हो गया।
चंद्रसेन ने उसे काफी ढूंढा। जब कुछ पता नहीं चला तो वे अपनी राजधानी वापिस पहुंच गए। महाराज को यूँ अचानक वापिस पाकर सारे दरबारी अत्यधिक प्रसन्न हो गए।
चंद्रसेन भी खुश थे। लेकिन वे अपनी रानी से बहुत नाराज थे। घातक कि वे रानी से नहीं मिलना चाहते।
हमारा संदेश मिलने पर भी उन्होंने हमें छुड़ाने के लिए कुछ नहीं किया। यहाँ तक कि हमारे संदेश का कोई भी उत्तर नहीं दिया।
जे जॉले वे दरबार में यह घोषणा करने ही वाले थे कि वे अपनी रानी से हमेशा के लिए अलग हो रहे हैं, तभी बाँसुरी की मधुर आवाज सुनाई दी।
अचानक वही बाँसुरी-वादक वहाँ आ पहुँचा; अब राजा चंद्रसेन ने बाँसुरी-वादक को ध्यान से देखा।
वह और कोई नहीं, स्वयं महारानी थीं।
“महारानी आप ? तो आपने हमें छुड़ाया है ? आपकी चतुराई के कारण हमें अपने राज्यकोष से धन भी नहीं निकालना पड़ा।
आप सचमुच बुद्धिमान हैं।'
इस तरह रानी ने राजा चंद्रसेन के हृदय में और भी गहरा स्थान बना लिया।