शहर में कुछ ही समय पहले मैट्रो रेल सेवा आरंभ हुई थी
तथा बसों और गाड़ियों के रास्ते बदल दिए गए थे ।
एमा को इस बारे में अधिक जानकारी नहीं थी ।
लेकिन वह इस विषय में अपने मॉम और डैड की बातें सुनती रहती थी ।
वे अक्सर बातें करते , “ इन्होंने सारी बसों के रास्ते बदल दिए हैं ।
अब हमें काफी अधिक दूरी तय करनी पड़ेगी ।
" उन्हें चिंता होने लगी थी , “ एमा को भी नये बस रूट से जाना होगा ।
बस स्टॉप दूर हो गया है ।
उसे ज्यादा पैदल चलना पड़ेगा ।
" एमा ने सोचा कि वे बेकार ही चिंता कर रहे थे ।
अगले दिन एमा स्कूल जाने के लिए निकली ।
अपने मॉम और डैड की चेतावनी के बावजूद वह दलदल वाले रास्ते पर चल पड़ी ,
जो बस स्टॉप तक जाने का छोटा रास्ता था ।
वह बड़े मजे से जा रही थी ।
अचानक उसे पत्तियों की सरसराहट सुनाई दी ।
फिर जोर से ' बुड़ - बुड़ ' की आवाज आई ।
लेकिन एमा ने उसकी परवाह नहीं की ।
उसने सोचा कि दलदल में कोई टोड ' टर्रा ' रहा होगा ।
तभी एक अन्य अजीब - सी आवाज आई , " डब ! डब !! डब !!! डुब ! डुब !! गड़प ! गड़प !! "
दलदल से उठी तेज आवाज ने एमा को डरा दिया ।
दलदल में से एक राक्षस बाहर निकल रहा था ।
वह बड़े बल्ब जैसी आंखों वाला एक गंदा- घिनौना राक्षस था ।
वह एमा की ओर तेजी से बढ़ने लगा ।
राक्षस अपने बड़े - बड़े हाथ लहराते हुए उसके पास पहुंच गया ।
वह उसे अपने पंजे में दबोचना चाहता था ।
एमा ने उससे बचने की कोशिश की , लेकिन राक्षस ने उसे अपने पंजों में दबोच लिया ।
राक्षस के हमले से एमा बुरी तरह घबरा गई ।
उसका दिल तेजी से धड़क उठा और सिर चकराने लगा ।
एमा की समझ में कुछ नहीं आ रहा था कि वह राक्षस की पकड़ से कैसे निकले ?
उसने गहरी सांसें भरते हुए खुद को शांत रखने की कोशिश की और उसकी पकड़ से छूटने का उपाय सोचने लगी ।
तभी एमा को एक उपाय सूझ गया ।
उसने अपने आसपास देखा ।
उसके सिर के ठीक ऊपर पेड़ की एक शाखा थी ।
उसने अपना स्कूल बैग घुमाकर उस पर लटका दिया ।
स्कूल बैग शाखा में फंस गया ।
फिर उसने बैग को इतनी जोर से खींचा कि उसके साथ शाखा भी झुकी , लेकिन वह टूटी नहीं ।
पेड़ की शाखा अपनी जगह पर झूलने लगी और उसके साथ ही एमा भी झूलते हुए उस राक्षस के शिकंजे से छूट गई ।
वह एक साफ और सूखी जगह पर गिरी ।
उसने तुरंत अपना स्कूल बैग उठाया और अपनी नन्हीं टांगों के बल पर तेजी से घर की ओर दौड़ लगा दी ।
भय के कारण वह बुरी तरह हांफ रही थी ।
आज उसकी जान दलदली राक्षस द्वारा बड़ी मुश्किल से बची थी ।
इसके बाद एमा ने बस स्टॉप तक जाने के लिए कभी छोटे रास्ते का प्रयोग नहीं किया ।
लंबा रास्ता अधिक सुरक्षित था ।
छोटे रास्ते प्रायः खतरनाक और उबड़ - खाबड़ होते हैं ।
अब उसकी समझ में आ गया था कि माता - पिता जो भी कहते हैं , वह हमारी भलाई के लिए ही होता है ।
हर बच्चे को अपने माता - पिता की बात अवश्य माननी चाहिए ।