कुछ दिन पहले हनी ने स्कूल में दाखिला लिया था ।
वह अन्य लड़कियों के साथ स्कूल के हॉस्टल में रहती थी ।
लड़कियों से कहा गया था कि अगर वे अपने पालतू जानवरों को संभाल सकें , तो उन्हें अपने साथ हॉस्टल में रख सकती थीं ।
हनी के पास कोई पालतू पक्षी नहीं था , लेकिन वह अक्सर पक्षियों और गिलहरियों को दाना डाला करती थी ।
हनी बहुत प्यारी और हंसमुख लड़की थी ।
उसके बाल भूरे और घुंघराले थे ।
उसने शीघ्र ही बहुत सी लड़कियों से दोस्ती कर ली थी ।
केवल मेलिसा ही उसकी दोस्त नहीं बनी ।
मेलिसा बहुत सुंदर लड़की थी ।
वह बहुत कम बोलती और हंसती थी ।
हनी ने उससे बात करना चाहा , लेकिन वह चुपचाप वहां से चल दी ।
यह देखकर हनी उलझन में पड़ गई ।
पूरी कक्षा में यह बात कोई नहीं जानता था कि मेलिसा इतनी चुप और उदास क्यों रहती थी ।
एक दिन हनी ने आधी छुट्टी के समय कक्षा में जाकर देखा कि मेलिसा रो रही थी ।
वह धीरे से उसके पास बैठ गई और उसके चुप होने का इंतजार करने लगी ।
इसके बाद उसने अपने बैग से कहानियों की एक किताब निकाली ।
उसे चुपचाप मेलिसा के डेस्क पर रखा और वहां से चली गई ।
अगले दिन हनी ने मेलिसा के पेंसिल बॉक्स के पास कुछ जैली बींस रख दी और वहां से चली गई ।
इसी तरह कुछ दिन चलता रहा ।
उसे एहसास हो गया था कि मेलिसा कितनी अकेली थी ।
एक दिन सुबह हनी ने उठकर देखा कि हॉस्टल में शोर मचा हुआ था ।
सारी लड़कियां खिड़की से बाहर झांक रही थीं ।
हनी भी उनमें शामिल हो गई ।
पेड़ की शाखा पर बैठा बिल्ली का बच्चा ' म्याऊं म्याऊं ' ' कर रहा था और एक बड़ी - सी चील उसे खाने के लिए आसपास मंडरा रही थी ।
बिल्ली का वह बच्चा मेलिसा का पालतू था , मगर मेलिसा अपने पलंग पर चुपचाप बैठी थी ।
उसकी हालत देखने लायक थी ।
डर के मारे उसका चेहरा सफेद पड़ गया था ।
हनी ने मेलिसा को देखा और किसी लड़की के कुछ कहने से पहले ही वह खिड़की की मुंडेर पर जा पहुंची ।
फिर उसने एक छलांग मारी और पेड़ की शाखा से लटक गई ।
“ नहीं , हनी ! " कोई बहुत जोर से चिल्लाया ।
सबने मुड़कर देखा , मेलिसा जोर - जोर से चिल्ला रही थी ।
लड़कियों ने मेलिसा और हनी को कभी ऐसी हालत में नहीं देखा था ।
अचानक उनकी वार्डन वहां आईं और यह सब देखकर हैरान रह गईं ।
हनी धीरे धीरे बिल्ली के बच्चे को फुसलाते हुए उसके पास पहुंच गई ।
उसने नन्हे बच्चे को गोद में लिया और उसे दुलारने लगी ।
फिर बिल्ली के बच्चे को गोद में लिए हनी उसी तरह छलांग लगाकर खिड़की पर वापस आ गई , जिस तरह वह गई थी ।
मेलिसा खिड़की की ओर दौड़ी ।
उसके गालों पर आंसू बह रहे थे ।
उसने हनी को गले से लगा लिया ।
वह उससे बातें करने लगी । वह रो रही थी , हंस रही थी तथा हनी और अपनी पालतू बिल्ली से बातें कर रही थी ।
पहले मेलिसा कितनी अकेली थी , लेकिन आज उसे हनी के रूप में एक सच्ची सहेली मिल गई थी ।
64 मेलिसा बोली , " प्यारी हनी ! मैं तुम्हारा एहसान नहीं भूल सकती ।
तुमने आज मेरी प्यारी बिल्ली की जान बचा ली ।
अगर उसे कुछ हो जाता , तो मैं भी जिंदा न रहती ।
" हनी ने उसे गले से लगाते हुए कहा , “ मेलिसा ऐसी बातें नहीं कहते ।
जब ईश्वर कोई मुसीबत देता है , तो उसका हल भी सुझा देता है ।
मैं तुम्हारी दोस्त हूं और सच्चे दोस्त मुसीबत के समय काम आते हैं ।
" इसके बाद हनी और मेलिसा की दोस्ती की मिसाल दी जाने लगी ।