हरि अपनी मां के साथ एक छोटी - सी झोंपड़ी में रहता था ।
वे इतने गरीब थे कि उन्हें अक्सर रात को भूखे ही सोना पड़ता था ।
हरि गांव वालों के छोटे - मोटे काम करके खाने का प्रबंध करता था , लेकिन वह कभी उनके लिए पूरा नहीं पड़ता था ।
हरि चाहता था कि किसी तरह वह अपनी मां की मदद करे , लेकिन उसे कोई उपाय नहीं सूझ रहा था ।
एक रात बहुत भयंकर तूफान आया ।
बहुत जोरों से पानी बरसने लगा ।
इधर - उधर चारों तरफ पानी भर गया ।
ऐसे में झोंपड़ी में पानी टपकने लगा ।
हरि ने सोचा कि कहीं उनकी झोंपड़ी भी सैलाब में न बह जाए ।
यही सोचते सोचते उसकी आंख लग गई ।
उसने सपना देखा कि उसकी झोंपड़ी की छत पर एक चील बैठी थी , जो उसे उड़ाकर अपने साथ ले गई ।
फिर हरि ने स्वयं को एक अजीब सी जगह पाया ।
उस दिन वहां बाजार लगा था ।
लोग अपना सामान और पशु - पक्षी बेचने आए थे ।
बहुत - सी दुकानों पर खाने - पीने का सामान बिक रहा था ।
हर तरफ चीख - पुकार मची थी ।
हरि के पास पैसे नहीं थे , इसलिए वह चाहते हुए भी कुछ नहीं खरीद सकता था ।
लेकिन उसे लगा कि उसकी जेब में कुछ रखा है ।
उसने जेब में हाथ डालकर उसे निकाला- वह चील का एक सुनहरा पंख था ।
हरि ने पंख को बेचा , तो उसे बहुत से सिक्के मिल गए ।
फिर उसने उन सिक्कों से अपने लिए एक मुर्गी और एक गाय खरीद ली ।
उसके बाद उसने अपने घर वापस जाने के बारे में सोचा ।
लेकिन हरि को घर वापस जाने का रास्ता नहीं मालूम था ।
उसे तो चील अपने साथ लाई थी ।
अब वह उसे कहीं नहीं दिखाई दे रही थी ।
उसने अपनी आंखें बंद कर लीं और उस चील के बारे में सोचने लगा ।
अगले ही पल वह अपनी मुर्गी और गाय के साथ अपनी झोंपड़ी तक पहुंच गया ।
अचानक मां के हिलाने से उसकी नींद टूटी ।
तूफान रुक गया था ।
जब हरि ने मां को अपने सपने के बारे में बताया , तो वह बोली , " बुद्धू बेटे ! क्या सपने भी कभी सच होते हैं ! "
हरि ने सोचा कि मां ठीक कह रही थी ।
सपने में कुछ मिलने का मतलब यह नहीं होता कि हमें वास्तव में ऐसा कुछ मिल जाएगा ।
वह कुएं पर नहाने चल दिया ।
अचानक उसे अपनी झोंपड़ी की छत से चील की आवाज सुनाई दी ।
उसने देखा कि एक बड़ी चील वहां बैठी थी ।
वह सुनहरे पंखों वाली चील थी !
तभी अचानक वह चील नीचे आई और हरि को अपने पंजों में दबाकर पेड़ों और नदियों से बहुत दूर , ऊपर की ओर ले चली ।
ऐसा लग रहा था , मानो कोई सपना चल रहा हो ।
फिर चील ने हरि को उसी जगह उतार दिया , जिसे उसने सपने में देखा था ।
वहां उसी तरह का बाजार लगा हुआ था ।
लोग खाने पीने के सामान के अलावा मुर्गी , गाय , बकरी और भेड़ आदि बेचने आए थे ।
मगर वह चील कहीं नहीं दिख रही थी ।
हरि को अपना सपना याद था ।
उसने अपनी जेब में हाथ डाला , तो उसे वाकई सुनहरा पंख मिला ।
हरि ने वह पंख बेचकर अपने लिए एक मुर्गी और एक गाय खरीद ली ।
अगले ही पल वह चील वापस आ गई ।
हरि उस चील को देख ही रहा था कि अपनी मुर्गी और गाय के साथ उसने खुद को झोंपड़ी के बाहर पाया ।
ये क्या ! मेरा सपना तो सच हो गया ।
वह अपनी मां को देखकर चिल्लाया , " मां ! हम आज के बाद कभी भूखे नहीं रहेंगे ।
" उस दिन के बाद जब कभी तूफान आता , तो सुनहरे पंखों वाली वह बड़ी चील
हरि की मदद करने के लिए अवश्य आती , क्योंकि वह एक दयालु और नेकदिल लड़का था ।