श्रीधर और शनिधर नाम के दो मित्र थे।
दोनों ही काफी धनी व्यापारी थे।
एक बार उन्होंने व्यापार के लिए दूर देश जाने का निश्चय किया।
रास्ते में एक रेगिस्तान पड़ा, जिसमें एक भयानक राक्षस का राज चलता था।
इस बारे में दोनों मित्रों को कुछ पता नहीं था ।
श्रीधर कुछ अधिक हिम्मती था।
पहले उसने आगे बढ़ने का निश्चय किया। उसे लग
रहा था कि पहले जाने में यात्रा का अधिक आनंद
आएगा। शनिधर भी मान गया।
उसने सोचा कि बाद में जाना अधिक सुरक्षित रहेगा।
रास्ते में श्रीधर और उसके साथी बीच रेगिस्तान में रास्ता भटक गए।
राक्षस उनके सामने एक यात्री के वेश में आया तथा उन सभी को उसने और अधिक भटका दिया।
इसके बाद मौका लगते ही वह उन लोगों को
मारकर खा गया। कुछ महीने बाद शनिधर ने यात्रा शुरू की।
वह कुछ अधिक बुद्धिमान था।
वह यात्री के वेश में आए राक्षस को पहचान गया।
उसने अपने साथियों को उसकी चाल के बारे में सावधान कर दिया।
समझदारी और बुद्धि का इस्तेमाल करके शनिधर और उसके साथियों ने रास्ता सुरक्षित पार कर लिया।
परदेश में व्यापार करके उसने काफी लाभ कमाया और फिर सुरक्षित वापस लौट आया।