परी की कहानी, परी की जुबानी
देवास जिले के अकबरपुर गाँव की परी पाण्डे की कहानी हमें सिखाती है कि
हौसले और संघर्ष से बालिकाएं किस तरह रूढ़िवादी विचारों से मुक्ति पा सकती हैं। परी ने
इसके लिए प्रयास कर परिवारवालों का विश्वास जीता और आज वह बेहतर भविष्य की
दिशा में आगे बढ़ रही है। आइये, हम परी की प्रेरणास्पद कहानी खुद उसी की जुबानी
सुनते हैं-
'मेरे गॉव अकबरपुर में लड़कियों को अधिक पढ़ाया नहीं जाता है। पराया धन
मानकर उनकी जल्दी शादी कर दी जाती है। मेरे साथ भी यही हुआ। माता-पिता मेरी शादी
तय करने लगे। मैंने अपनी शादी का विरोध किया तो पिता ने मुझसे बात करना बंद कर
दिया। उस समय मैं 6ठी कक्षा में पढ़ती थी। तब पढ़ाई करने के लिए मुझे बहुत संघर्ष करना
पड़ा । हमारी आर्थिक स्थिति भी अच्छी नहीं थी | इसलिए मैं रोज सुबह 6 बजे उठकर
बकरी चराने जाती और 9 बजे वापस घर आकर 0 बजे स्कूल जाती | स्कूल में 2 बजे
लंच की छुट्टी होती तो मैं फिर से बकरी चराने चली जाती। शाम को जब घर पहुँचती तो घर
का काम करना पड़ता था। पूरा काम करने के बाद मैं पढ़ाई करती । मुझे डर था कि यदि मैं
फेल हो गई तो पिताजी मेरी शादी कर देंगे।'
गाँवमें आगे की पढ़ाई करने के लिये स्कूल नहीं था, किन्तु 6ठी क्लास में अच्छे
नंबर से पास होने से आगे की पढ़ाई के लिये होस्टल जाने के लिए मेरे शिक्षक ने मेरे पापा
को मनाया और मैं होस्टल आ गई। यहाँ आकर मुझे पता चला कि पढ़ाई के आगे भी कोई
दुनिया है। यहाँ हमें जीवन कौशल की शिक्षा दी गई, जिसने मेरे जीवन को एक नई दिशा
प्रदान की है। इसके जरिये मैंने खुद को पहचाना और मुझे पता चला कि मैं चित्र भी बना
सकती हूँ। होस्टल में आकर मैंने अपनी नई पहचान बनाई । जीवन कौशल शिक्षा
प्रशिक्षण के कारण मुझे दिल्ली जाने का अवसर मिला जो मेरे जीवन के सबसे अधिक
खुशी वाले पलथे।'
आज मैं बहुत फूख्र महसूस कर रही हूँ। मध्यप्रदेश में अच्छे नंबरों से पास होने
वाली 50 बालिकाओं में मुझे चुना गया और मुझे गर्स आईकॉन का अवार्ड दिया गया।
इसमें मुझे 25000 रु. की स्कॉलरशीप मिली। मैंने शिक्षामंत्री को अपने जीवन की कहानी
सुनाई और जीवन कौशल शिक्षा प्रशिक्षण के बारे में बताया। मैंने बताया कि गर्मी के
मौसम में हमारे गाँव में भी किशोर बालिकाओं को जीवन कौशल की शिक्षा सामुदायिक
जागरूकता कार्यक्रम के माध्यम से दी जायेगी। मैं स्कॉलरशीप से प्राप्त रुपयों में से 5000
रुपए समाज सुधार में लगाना चाहती हूँ। यह सुनकर शिक्षामंत्री बहुत खुश हुए और उन्होंने
| भी इस काम के लिए मुझे प्रोत्साहन दिया । मेरे माता-पिता भी बहुत खुश हैं और कहते हैं
| कि हमें हमारी बेटी पर गर्व है। अब वो मुझे और आगे भी पढ़ाना चाहते हैं। ' ण