एक हाथी को अपनी शक्ति पर बड़ा घमंड था ।
छोटे जानवरों को वह अपने सामने बिलकुल कमजोर समझता था ।
वह धम-धम करके चलता था, जिससे आस-पास के छोटे प्राणी डर जाते थे ।
चलते समय वह यह भी नहीं देखता था कि पाँव के नीचे क्या आ रहा है ।
कितने ही छोटे कीड़ें और जानवर उसके पाँव के नीचे पिचकर मर जाते थे ।
वह अकसर पानी पीने के लिए जंगल के पोखर पर आया करता था । फिर सूँड़ में पानी भरकर तेजी से उछलता था और जोर से चीखता था ।
उसकी धम-धम चाल से रोज कई मेढक उसके पाँव के नीचे दबकर मर जाते थे ।
एक दिन एक बूढ़े और अनुभवी मेढक ने हाथी को प्यार से समझाया, अरे भाई, तुम रोज यहाँ पानी पीने आते हो और हमारे कई भाइयों को चोट पहुँचाते हो ।
तुम नीचे देखकर क्यों नहीं चलते ?
हम छोटे जरूर है लेकिन हमें भी चोट लगती है । हाथी ने चिंघाड़कर कहा - तुम जैसे कीड़े-मकोड़ों का ध्यान रखना मेरे बस की बात नहीं ।
तुम तो मेरे नाखून के बराबर हो । दो चार मर भी गए तो क्या फर्क पड़ता है ?
बेचारा बूढ़ा मेढ़क उस घमंडी हाथी से क्या कहता । वह चुप हो गया ।
उसने आस-पास के छोटे जानवरों से बात की । पास के एक बिल में कुछ चूहे रहते थे ।
मेढ़क ने चूहों से अपनी समस्या कही । एक चूहा बोला, वैसे तो हम सच में हाथी के नाखून के बराबर ही हैं ।
लेकिन हम सब मिल जाएँ तो बड़े हाथी का मुकाबला भी कर सकते हैं ।
चूहे पोखर के आस-पास के मच्छरों को जानते थे ।
उन्होंने मच्छरों से बात की तो वे भी उनका साथ देने के लिए तैयार हो गए ।
सबने मिलकर एक सेना तैयार की । अगले दिन जब हाथी आया तो सब पहले से तैयार थे ।
जैसे ही हाथी ने अपनी सूँड नीचे की, एक चूहा उसकी सूँड से चिपक गया ।
हाथी चौंक गया । तभी दूसरा चूहा सूँड पर उछलकर सीधा आँखों तक पहुँच गया ।
और काटने लगा । हाथी चिल्लाया और तभी मच्छरों की पूरी सेना उस पर टूट पड़ी ।
हाथी की समझ में नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है । वह भागने लगा और मच्छर उसके साथ उसके पीछे-पीछे उड़े ।
वे तब तक उसे काटते रहे, जब तक कि हाथी गिर नहीं पड़ा ।
उस दिन के बाद वह कभी वहाँ नहीं आया । इस तरह छोटे-छोटे जानवरों ने मिलकर एक विशाल घमंडी हाथी को हरा दिया ।