एक छोटा लड़का था आशु। उसे नई-नई बातें सीखना बहुत अच्छा लगता था।
वह सभी लोगों से तरह-तरह के प्रश्न पूछता था और अपना ज्ञान बढ़ाता था।
कोई साधु बाबा उसे मिल जाते तो वह उनके पास घंटों बैठकर ज्ञान की बातें सुना करता था।
अपने आसपास के सभी विद्यालयों के शिक्षकों के पास जाकर वह ज्ञान प्राप्त कर चूका था।
उस इलाके में अब कोई नहीं बचा था, जिसके पास जाकर उसने सीखा न हो।
इसलिए उसने निश्चय किया कि वह दूर देशों में रहने वाले शिक्षकों के पास जाएगा।
उसने विजयनगर के एक शिक्षक के विषय में बहुत सुना था। बस वह विजयनगर के लिए निकल पड़ा।
लंबी यात्रा के बाद वह विजयनगर पहुँचा। वहाँ जाकर उसने शिक्षक को प्रणाम किया।
शिक्षक ने उसे अपने पास बैठाया और पूछा कि उसने क्या-क्या सीखा है ?
सब सुनने के बाद उन्होंने अपने एक शिष्य से कहाँ, आशु के लिए पानी लेकर आओ। बोल-बोलकर थक गया होगा।
उनका शिष्य एक खाली गिलास और पानी से भरा लोटा रख गया।
तब शिक्षक ने लोटे से गिलास में पानी डालना शुरू किया। आशु देख रहा था। शिक्षक पानी डालते जा रहे थे।
धीरे-धीरे गिलास भर गया लेकिन उन्होंने पानी डालना बंद नहीं किया। पानी गिलास से निकलकर बाहर गिरने लगा।
आशु को आश्चर्य हुआ। आखिर जब पानी जमीन पर बहने लगा तब उसने पूछा, गिलास तो पूरा भर गया है।
अब आप पानी क्यों डाल रहे हैं, देखिये न, पानी यूँ ही बेकार हो रहा है।
यही मैं तुम्हें समझाना चाहता हूँ बेटा। शिक्षक ने मुस्कुराकर कहा।
तुम इस गिलास की तरह हो और तुम्हारा ज्ञान इस पानी की तरह। तुमने पहले ही इतना सीख लिया है कि गिलास पूरा भर गया है।
यदि मैं और अधिक सिखाऊँगा तो ज्ञान का दुरूपयोग होगा। इसलिए जो कुछ सीखा है, उसका सही ढंग से उपयोग करो।
जाओ बेटा और अपने ज्ञान को खर्च करो। उन्होंने आशु को समझाया।
आशु समझ गया और संतुष्ट होकर अपने घर लौट आया।