जब सोना को दो-दो दिखाई देने लगे

एक दिन सोना जब सोकर उठी तो उसे थोड़ा धुँधला-सा दिखाई दे रहा था।

उसने अपनी आँखे को अच्छी तरह धोया। तब यह धुँधलापन कुछ कम हुआ। लेकिन उसे लग रहा था कि आँखों में कुछ हो गया है।

वह स्कूल जाने के लिए तैयार हुई।

नाश्ता करने के लिए जब वह खाने की मेज पर आकर बैठी तो एक अजीब बात हुई। सामने दूध का गिलास लिए हुए दो मम्मियाँ खड़ी थी।

उसने अपनी आँखों को मला। लेकिन कोई फर्क नहीं पड़ा। वह दूध पीकर जल्दी से दौड़ गई।

स्कूल में सब कुछ ठीक-ठाक था। सोना ने चैन की साँस ली। गणित की क्लास में उसकी दोस्त रूपा ने उससे कहा, सोना, मेरी नोटबुक दे दो।

तुम कल घर ले गई थी न! मुझे काम करना है, लाओ दे दो।

सोना को अचानक ध्यान आया कि वह तो रूपा की नोटबुक लाना भूल गई है।

वह बोली, रूपा मैं नोटबुक कल दूँगी। मेरा काम अभी बाकी है।

लेकिन अब मैं क्या करूँ ? रूपा परेशान होकर बोली।

अरे भूल गई तो मैं क्या करूँ ? सोना बेफिक्री से बोली।

लेकिन तुम्हें ध्यान रखना चाहिए था न सोना ! रूपा फिर भी धीरे से ही बोल रही थी।

गलती सोना की थी। लेकिन वह ही रूपा पर गुस्सा करने लगी, रूपा क्या तुम एक दिन पेपर पर काम नहीं कर सकती ? ऐसे कह रही हो जैसे मैं तुम्हारी नोटबुक कभी दूँगी ही नहीं।

काम पूरा हो जाएगा तो दे दूँगी न ! वह मुँह बनाकर बोली।

रूपा बेचारी ने एक पेपर पर काम उतार लिया। तभी खाने की छुट्टी हो गई। सोना और रूपा खाने का डिब्बा लेकर बाहर आकर बैठीं।

सोना ने देखा कि रूपा बिलकुल शांत थी। रूपा उसकी बहुत प्यारी दोस्त थी। उसने पूछा, नाराज हो गई क्या ?

नहीं, रूपा ने मुस्कुराकर कहा।

तभी सोना के साथ फिर वही अजीब बात हुई। सामने दो रूपा दिखाई देने लगी। ये क्या हो गया दोबारा से ? उसने सोचा।

सोना ने ध्यान से देखा। दोनों रूपा में एक अंतर था। एक रूपा मुस्कुरा रही थी, लेकिन दूसरी दुखी थी।

उसे समझ नहीं आया कि इसका क्या मतलब है ?

छुट्टी के बाद वह घर आ गई। आकर तुरंत टी. वि. खोला और कार्टून देखने बैठ गई। मम्मी ने कहा, बेटा पहले कपड़े बदलो। हाथ-मुहँ धोकर दूध पी लो।

लेकिन सोना को जैसे सुनाई ही नहीं दिया।

मम्मी फिर बोली, सोना, बेटा कार्टून बाद में देखना। अभी उठो और कपड़े बदलो।

जब सोना ने उनकी बात पर ध्यान नहीं दिया तो उन्हें बहुत गुस्सा आ गया। वो डाँटकर बोली, सोना उठो।

सोना चौंक गई। नाराजगी से मुहँ बनाकर अपने कमरे में गई।

कपड़े बदलकर दूध पिने आ गई। तभी रूपा का फोन आया। मम्मी ने फोन उठाया।

रूपा बोली, आंटी नमस्ते। मैंने सोना को यह याद दिलाने के लिए फोन किया था कि आज वह गणित का काम जरूर पूरा कर ले।

आज वह मेरी नोटबुक लाना भूल गई थी। आप उससे कह दीजिएगा। मम्मी को बड़ा गुस्सा आया।

वे सोना पर गुस्सा होने लगी, सोना मैंने तुमसे हजार बार कहा है कि अपना स्कूल बैग रात को ही लगा लिया करो।

रूपा की नोटबुक भूल गई थी न, और गणित का काम पूरा क्यों नहीं किया ? बोलो।

सोना पहले से नाराज थी। मम्मी ने दोबारा डाँटा तो उसे रोना आ गया।

वह बोली आप मुझे हमेशा डाँटती ही रहती हैं। आप मुझे बिलकुल प्यार नहीं करती।

उसने मम्मी की ओर देखा तो फिर वही हुआ। एक की जगह फिर दो मम्मियाँ सामने थी।

सोना ने आँसू भरी आँखों से देखा - एक के चेहरे पर गुस्सा था और दूसरी के चेहरे पर ढेर सारा प्यार था।

वे इसलिए गुस्सा थी क्योंकि वे उसकी भलाई चाहती थी। उसे याद आया की स्कूल में रूपा के दो चेहरों में से भी एक मुस्कुरा रहा था और दूसरा दुखी था।

मतलब मैंने जो कुछ रूपा से कहा, उसके कारण उसका मन बहुत दुखी हुआ होगा। सोना ने सोचा।

वह फौरन उठकर मम्मी के पास आई और उनसे माफी माँगी मम्मी ने प्यार से उसे गले से लगा लिया।

फिर उसने रूपा को फोन किया और उससे भी अपनी गलती के लिए सॉरी कहा।

रूपा खुश थी कि सोना को उसकी गलती समझ आ गई थी।

सोना ने जल्दी से दूध पिया और रूपा की नोटबुक से गणित का काम पूरा किया।

अपना स्कूल बैग लगाया और फिर कार्टून देखने बैठी। मम्मी ने अब उसे नहीं टोका। उस्सने अपना काम जो पूरा कर लिया था।

सोना को समझ आ गया था कि यह दूसरा चेहरा मन की बात बताता था।

उसने तय किया कि अब सोच-समझकर ही सबके साथ व्यवहार करेगी, जिससे किसी का मन दुखी न हो। और पता है उस दिन के बाद उसे वे दो-दो चेहरे कभी भी दिखाई नहीं दिए !