सोल एक मछली होती है, जिसका मुँह थोड़ा टेढ़ा होता है।
उसका मुँह ऐसा कैसे हुआ, उसकी भी एक कहानी है।
बहुत पुरानी बात है, एक समुद्र में सोल मछली के साथ और भी बहुत सारी मछलियाँ रहती थीं।
उनमें हमेशा इस बात पर लड़ाई होती थी कि कौन-सी मछली सबसे तेज़ तैरती है।
एक दिन एक बुजुर्ग मछली ने कहा, 'इस लड़ाई को हमेशा के लिए ख़त्म कर दो।
ऐसा करो, तैरने की एक प्रतियोगिता कर लो।
जो मछली जीतेगी, वही सबसे तेज़ तैराक मानी जाएगी।'
सभी मछलियाँ इस बात पर राजी हो गईं।
प्रतियोगिता शुरू हुई। सभी मछलियाँ तेज़ तैरने की कोशिश कर रही थीं।
सोल मछली भी प्रतियोगिता में शामिल थी।
सबको तैरकर काफ़ी दूर लगे एक समुद्री पौधे तक जाना था।
फिर उस पौधे को छूकर वापिस वहीं आना था, जहाँ से प्रतियोगिता शुरू हुई थी।
कुछ बुजुर्ग मछलियाँ वहाँ खड़ी थीं, यह तय करने के लिए कि कौन विजेता है।
प्रतियोगिता छोटी-सी हिलसा मछली ने जीती।
जब सोल ने यह देखा कि वह प्रतियोगिता हार गई है तो उसे हिलसा से बहुत ईर्ष्या हुई।
वह मुँह बिचकाकर बोली, 'हुँ सबसे तेज़ यह तैरती है, यह छोटी-सी साधारण हिलसा मछली!'
बस उसका इतना कहना था कि उसका मुँह वैसा ही रह गया, टेढ़ा-का-टेढ़ा।
आज भी सोल मछलियाँ टेढ़े मुँह की ही होती हैं।
तो अगली बार जब कोई तुमसे अच्छा काम करे या तुमसे आगे निकल जाए तो उससे सीखने की कोशिश करना।
मुँह मत बिचकाना, वरना...