एक शेर और एक चूहा दोस्त थे।
दोनों के घर पास-पास थे।
एक दिन शेर को एक शिकार मिला।
उसने चूहे को आवाज़ लगाई आओ दोस्त, मेरे साथ खाना खा लो।
तुम्हें जो खाना है खाओ, मुझे इससे ज़्यादा ज़रूरी काम करने हैं।
बाहर से आवाज़ आई।
शेर को बड़ा बुरा लगा।
अगले ही दिन चूहे को शहद का एक डिब्बा मिला।
वह खाने के लिए बैठा तो उसने शेर को आवाज़ लगाई, 'दोस्त, आओ मेरे साथ खाना खा लो।
बाहर से उत्तर आया, “मुझे नहीं खाना है, तुम्हीं खाओ अपना खाना।
जा जा जाए साहा आजा खा साहा चछए, शा एछ चूहे को भी बड़ा बुरा लगा।
लेकिन उसने कुछ नहीं कहा।
दो दिन के बाद दोनों जंगल में मिले।
दोनों की दोस्ती इतनी पक्को थी कि खाने वाली बात को भुलाकर वे फिर से एक साथ खेलने लगे।
बातों-बातों में दोनों को पता चला कि शेर ने जब चूहे को आवाज़ लगाई थी तो उसने सुना ही नहीं था।
न ही चूहे ने कोई रूखा जवाब दिया था।
शेर ने भी यही बात चूहे को बताई। चूहे की आवाज़ न तो उसने सुनी थी, न ही कोई ख़राब-सा जवाब दिया था।
'ज़रूर कुछ गड़बड़ है।' दोनों एक साथ बोले।
हमको पता लगाना होगा कि कौन हम दोनों की दोस्ती तोड़ने की कोशिश कर रहा है।
' शेर गुस्से से दहाड़कर बोला।
“ठीक कहा, कोई तो है, जो हम दोनों को परेशान करना चाहता है।' चूहे ने कहा।
उनकी बातें छिपकर कोई सुन रहा था।
तभी किसी के चुपके से भागने की आवाज्ञ आई।
दोनों ने देखा कि यह तो लोमडी थी, जो भाग रही थी।
शेर ने दहाड़कर कहा, 'रुक जा, नहीं तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।' ऐसा कहकर शेर ने लपककर लोमडी को पकड॒ लिया।
शेर ने चूहे से कहा, “दोस्त, आज रात के खाने में मैं एक लोमडी पकाने वाला हूँ।
रात का खाना तुम मेरे साथ खाना।'
चूहा बोला, 'ज़रूर आऊँगा मैं। ऐसा भोजन तो मैं छोड़ ही नहीं सकता!
लोमडी घबरा गई। बेचारी माफी माँगने लगी।
शेर ने कहा, 'सो उठक-बैठक करो ओर एक हज़ार बार बोलो-मैं अब किसी को तंग नहीं करूँगी।'
लोमडी बेचारी क्या करती।
अपनी गूलती की सज़ा तो उसको मिलनी ही थी न।
दो घंटे तक वह यही वाक्य दोहराती रही-' अब में किसी को तंग नहीं करूँगी।'
शेर और चूहे की दोस्ती और भी पक्की हो गई।
अच्छे दोस्त किसी तीसरे के कहने से अपनी दोस्ती को खुत्म नहीं होने देते।