रूस नाम का एक बहुत बड़ा देश है।
वहाँ एक किसान रहता था।
एक दिन वह अपने खेतों में काम कर रहा था।
तभी उसने देखा कि उसके राज्य के महाराज उसके खेत में आए।
महाराज खडे होकर देखने लगे कि वह कैसे ज़मीन में हल चला रहा है।
फिर उन्होंने पूछा, 'इतनी मेहनत के बाद महीने भर में कितना कमा लेते हो ?'
“अस्सी रूबल, महाराज।' किसान ने आदर के साथ उत्तर दिया।
“और इन अस्सी रूबल को खर्च कैसे करते हो ?' महाराज ने पूछा।
“महाराज मैं पूरे पैसों के पाँच हिस्से करता हूँ।
पहला हिस्सा राज्य के कर चुकाने में जाता है, दूसरे हिस्से से मैं अपना कर्ज चुकाता हूँ, तीसरा हिस्सा मैं उधार दे देता हूँ, चौथे हिस्से से घर का खर्च चलता हूँ और पाँचवाँ हिस्सा मैं दान में दे देता हूँ।'
राजा को यह बात सुनकर बड़ा आश्चर्य हुआ।
वे समझ नहीं पाए कि कोई व्यक्ति हर महीने उधार भी देता है, उधार चुकाता भी है और दान भी देता है, ऐसा कैसे हो सकता है।
उन्होंने किसान से कहा, 'एक हिस्से से तुम राज्य के कर चुकाते हो, एक से घर का खर्च चलाते हो, यह बात समझ में आई, लेकिन बाकी के तीन हिस्सों वाली बात समझ में नहीं आई। ज़रा ठीक से समझाओ।'
“महाराज, मेरे पिताजी और माँ ने मुझे बड़ा किया, सब सिखाया।
उन्होंने जो कुछ आज तक मेरे लिए किया वह मेरे ऊपर उधार है।
अब मेरी बारी है उनकी सेवा करने की।
इसीलिए एक हिस्सा मैं उनकी देखरेख पर खर्च करता हूँ।
इस तरह मैं उनका कर्ज चुकाने की कोशिश करता हूँ।
अब उधार देनेवाली बात। मेरा एक बेटा है।
आज मैं उसके खाने-पीने की, पढ़ाई की और बाकी सारी ज़रूरतें पूरी करता हूँ, इस तरह मैं उसे उधार दे रहा हँ।
कल को जब वह बड़ा होगा तो वह हमारी देखभाल करेगा।
ठीक उसी तरह जैसे में अपने माता-पिता को करता हूँ और तब मैं समझूँगा कि मेरा उधार चुक गया।
रही बात दान करने की, तो यह एक हिस्सा मैं अपनी बेटी के. लिए खर्च करता हूँ।
जब वह बड़ी हो जाएगी, तब मैं उसका विवाह कर दूँगा।
वह हमें छोड़कर दूसरे घर चली जाएगी।
इस तरह जो कुछ भी मैं उसके लिए करूँगा, दान समझकर ही करूँगा।'
पूरी बात समझने के बाद महाराज बड़े ही प्रसन्न हुए।
उन्होंने मान लिया कि किसान बहुत ही चतुर और हाज़िरजवाब है।
उन्होंने किसान को अपना न्याय-मंत्री नियुक्त कर लिया।