एक गाँव में एक गरीब बढ़ई रहता था।
बढ़ई वह होता है, जो लकड़ी का काम करता है।
यह बढ़ई भी लकड़ी की मेज़ें, कुर्सियाँ, अलमारियाँ सब बनाया करता था।
उसके मन में बहुत इच्छा थो कि उसके पास एक दूध देने वाली गाय हो।
लेकिन उसके पास गाय खरीदने के लिए पैसे ही नहीं थे।
अपना मन बहलाने के लिए उसने लकड़ी की एक छोटी बछिया बनाई।
बढ़ई के काम में बहुत सफाई थी।
इसलिए लकड़ी की बछिया भी असली जेसी लगती थी।
बढ़ई ने बछिया के ऊपर रंग कर दिया।
उसकी बछिया की गर्दन घूमती थी।
पाँव भी मुड़ते थे और पूँछ भी हिलती थी।
बढ़ई अपने-आपको दिलासा देता था कि एक दिन उसकी बछिया एक बड़ी गाय में ज़रूर बदल जाएगी।
उसका एक दोस्त था, जो गड़रिया था।
वह अपनी भेड-बकरियों को चराने के लिए ले जाता था।
बढ़ई का दोस्त गडरिया एक दिन उसके घर आया।
उसने देखा कि एक सुंदर बछिया बढ़ई के घर में बैठी हुई थी।
गड़रिये ने बढ़ई से कहा, 'तुम इस बछिया को मेरी भेड्-बकरियों के साथ चरने भेज दो।
लगता है यह कई दिनों नो से बाहर नहीं गई हे, ससीलिए शांत बैठी है।' बढ़ई ने मना किया, 'नहीं भाई, यह अभी बहुत छोटी है, चल-फिर नहीं सकती। उसे रहने ही दो।'
तब गड्रिये ने कहा, 'कोई बात नहीं, में इसे अपने कंधे पर बैठाकर ले जाऊँगा। शाम को वापिस ले आऊँगा।'
गडरिये की जिद के आगे बढ़ई कुछ नहीं कह पाया। आखिर में बढई ने बछिया गड्रिये के कंधे पर रख दी।
गड्रिये को लगा कि बछिया काफी भारी है।
वह बोला, 'इसके वज़न से लगता है कि ये जल्दी ही एक बडी गाय जितनी बड़ी हो जाएगी।'
बढ़ई चुप रहा और सोचता रहा, “काश ऐसा हो सकता।'
चरागाह तक पहुँचते-पहँँचते गड़रिया काफी थक गया था।
बछिया काफी भारी थी। अपनी बाकी भेड-बकरियों को भी उसने घास चरने के लिए छोड दिया।
शाम को जब गडरिये ने आवाज़्ञ लगाई तो उसकी आवाज़ पहचानकर सारी भेंडें और बकरियाँ उसके पास आ गईं।
लेकिन बछिया नहीं आई। गडरिये ने एक बार फिर आवाज़ लगाई।
बछिया फिर भी नहीं आई। गड्रिये को लगा कि कहीं फिर से बछिया को कंधे पर बैठाकर न ले जाना पडे।
इसलिए उसने सोचा कि जो बछिया अकेले रहकर सुबह से शाम तक घास खा सकती है।
वह अपने-आप चलकर घर भी पहुँच सकती है।
गड़रिया अपनी भेड्-बकरियों को लेकर अपने घर चला गया।
उधर बढ़ई अपनी बछिया का इंतज़ार कर रहा था।
जब रात होने लगी तो वह गड्रिए के घर गया और बछिया के बारे में पूछा।
गड्रिये ने कहा, “मैंने सोचा।
वह अपने आप घर पहुँच जाएगी।
इसीलिए मैं उसे वहीं छोडुकर आ गया। क्या करता ?
इतनी भारी बछिया को एक बार फिर से लादकर लाता क्या ?
लेकिन उसे ले जाने की ज़िद तो तुमने ही की थी न ?' बढ़ई बोला।
'ठीक है, मैंने ही ज़िद की थी।
लेकिन तुम्हारी बछिया भी कुछ कम आलसी नहीं है।' गड़रिया बोला।
वे दोनों बछिया को ढूँढ़ते-दढूँढते उसी जगह पर पहुँचे।
लेकिन बछिया वहाँ से गायब थी। तब गड॒रिया बोला, 'देखा ?
मैंने इतनी आवाज़ें लगाईं, पर महारानी जी नहीं आईं और देखो ज़रा अब ख़ुद ही गायब हो गईं।'
बढ़ई की बछिया खो गई थी। उसने राजा से न्याय माँगा। राजा ने दोनों की बातें ध्यान से सुनीं।
फिर बोले, 'गडरिये को बछिया को वहाँ पर छोड॒कर नहीं आना चाहिए था।
वही बछिया को अपने साथ ले गया था।
इसलिए यह उसी की ज़िम्मेदारी थी कि वह बछिया को उसके मालिक तक पहुँचाए।
हमारा आदेश है कि गड़रिया उस बछिया के बदले में दूसरी बछिया लाकर बढ़ई को दे"
राजा की आज्ञा के अनुसार ऐसा ही हुआ।
कुछ दिनों के बाद यह नई बछिया एक गाय जितनी बड़ी हो गई-दूध देने वाली एक बढ़िया गाय जितनी।
और इस तरह बढ़ई की काठ की बछिया सचमुच एक गाय में बदल गई।