एक चित्रकार युवक आदित्य समुद्र के किनारे पर बैठकर चित्र बना रहा था।
तभी समुद्र के अंदर से बारह जलपरियाँ बाहर आईं।
उन्होंने ध्यान नहीं दिया कि आदित्य भी वहाँ बैठा है।
वे सुंदर युवतियों में बदल गईं और तट पर खेलने लगीं।
आदित्य छिपकर उन्हें देखने लगा।
थोड़ी देर बाद वहाँ कुछ लोग आते हुए दिखाई दिए।
जलपरियों ने वापिस मछलियों का रूप लिया और समुद्र के अंदर चली गईं।
इस हड्बड़ी में एक जलपरी एक पत्थर से टकराकर गिर पड़ी।
उसकी ग्यारह बहनें वहाँ से जा चुकी थीं।
लेकिन इस जलपरी के पैर में चोट लगी थी।
इसलिए यह वहीं थी।
वह अभी तक युवती के रूप में ही थी।
आदित्य ने देखा कि उसे चोट लगी है तो दौड़कर उसके पास आया।
आदित्य ने उसे उठने में मदद की।
उसके हाथों में लाल रंग लगा हुआ था, जो उठाते वक्त जलपरी के माथे पर लग गया।
जलपरी आदित्य के अच्छे स्वभाव से बहुत खुश हुई।
उसने आदित्य से कहा, ' आपसे मिलकर मेरे पिताजी को बहुत प्रसन्नता होगी। आप मेरे साथ चलिए।'
आदित्य को जलपरी से प्रेम हो गया था। वह उसके साथ जाने के लिए तैयार हो गया।
जलपरी उसे अपने साथ समुद्र के अंदर ले गई। उसने आदित्य को अपने पिताजी से मिलवाया।
उसके पिताजी समुद्र के राजा थे।
जब समुद्रराज ने सुना कि आदित्य ने उनकी बेटी की मदद की है, तब उन्होंने उससे पूछा, “बताओ बेटा, तुम्हें क्या इनाम चाहिए।'
आदित्य ने इनाम में जलपरी का हाथ माँग लिया। समुद्रराज बोले, 'इसके लिए तुम्हें एक परीक्षा देनी होगी।
मेरी बारह बेटियाँ हैं। सब देखने में एक जैसी हैं।
तुम्हें पहचानना होगा कि तुम जिससे प्रेम करते हो, वह कौन-सी है ?'
बारह जलपरियाँ आदित्य के सामने आकर खड़ी हो गईं। सब एक जैसी थीं।
आदित्य सोच रहा था कि कैसे पहचानेगा अपनी जलपरी को।
उसने ध्यान से देखा। तभी उसे एक जलपरी के माथे पर लाल रंग लगा हुआ दिखाई दिया।
यह वही लाल रंग था, जो उसके हाथों पर लगा हुआ था और उठाते समय जलपरी को लग गया था।
आदित्य उसे तुरंत पहचान गया।
उसने परीक्षा पास कर ली थी। उसका विवाह जलपरी से कर दिया गया। लेकिन अब समस्या यह थी कि वह हमेशा पानी के अंदर नहीं रह सकता था और जलपरी हमेशा पानी के बाहर नहीं रह सकती थी।
इसलिए आदित्य ने अपनी पत्नी से एक वादा किया।
उसने कहा, “मैं सुबह होते ही समुद्र के बाहर की दुनिया में जाकर अपने चित्र बनाऊँगा।
शाम होते ही मैं तुम्हारे पास इस समुद्र में आ जाया करूँगा।'
आदित्य ने ऐसा ही किया।
उसने अपना वादा हमेशा निभाया।
ठीक सूर्य की तरह, जो सुबह समुद्र की लहरों से निकलकर आसमान में चमकता है और शाम होते ही लहरों में छिप जाता है।
इसीलिए तो हम सूर्य को “आदित्य” कहकर भी बुलाते हैं!