जापान में एक बहुत ही सुंदर जगह है - नारूमी।
वहाँ पर एक नदी के किनारे एक नेवला रहता था।
यह नेवला नदी के पार जाकर जंगल के जानवरों को परेशान करता था।
वह सबको सताता भी रहता था।
यदि किसी को चोट लग जाए तो प्यार से उसे मरहम लगाने को देता था।
लेकिन यह मरहम नींबू के रस और काली मिर्च से बना होता था।
इस कारण मरहम लगानेवाले को और ज़्यादा पीड़ा होने लगती थी।
नेवले को यह सब देखकर और भी मज़ा आता था।
उसने एक दिन खरगोश के साथ ऐसा ही किया।
ख़रगोश ने उसी दिन सोच लिया कि वह दुष्ट नेवले को सबक ज़रूर सिखाएगा।
और एक दिन ख़रगोश को एक बढ़िया उपाय सूझ गया। उसने दो टोकरियाँ लीं, एक बड़ी और एक छोटी।
बड़ी टोकरी के नीचे उसने तारकोल लगा दिया।
ख़रगोश दोनों टोकरियाँ लेकर नेवले के पास पहुँचा और उससे बोला, “चलो, पहाड़ी के ऊपर चलें।
वहाँ बहुत मीठे आमों का एक पेड है।
वहाँ से आम लेकर आएँगे।'
लालची नेवले ने तुरंत बड़ी वाली टोकरी उससे ले लीं। खरगोश तो यही चाहता था।
पहाड़ी के ऊपर जाकर दोनों ने आमों से टोकरियाँ भर लीं।
बडी वाली टोकरी भारी हो गई।
नेवले ने भारी होने के कारण टोकरी नीचे रख दी।
टोकरी के नीचे तारकोल लगा हुआ था।
इसलिए टोकरी ज़मीन से चिपक गई।
आमों से भरी टोकरी को नेवला छोड़ना नहीं चाहता था। इसलिए उसने पूरा ज्ञोर लगाकर टोकरी उठाई। इससे उसके पंजे छिल गए।
खरगोश ने उससे कहा, “दोस्त, तुम्हें दर्द हो रहा होगा। ये लो दवा लगा लो।'
नेवले ने जब दवा लगाई तो दर्द से चिल्लाने लगा।
असल में यह वही नींबू ओर काली मिर्च का मरहम था, जो नेवला सबको दिया करता था।
नेवला परेशान होकर नदी कौ ओर भागा। वह नदीं पार करके जल्दी अपने घर पहुँचना चाहता था।
नदी के किनारे परं दो नावें खड़ी हुई थीं।
एक पुरानी थी और एक नई चमचमाती हुई।
वह तुरंत नई नाव में बैठ गया। इस नाव में एक छेद था।
नाव डूबने लगी। नेवला किसी तरह नदी पार करके दूसरे किनारे तक पहुँचा।
उसके छिले हुए पंजों पर मिर्च का जो मरहम था, उसका दर्द अभी तक हो रहां था।
ऊपर से पानी में भीगने के कारण ज़ख्म और ज़्यादा दर्द कर रहे थे।
उस दिन नेवले को इस बात का अनुभव हुआ कि उसकी हरकतों से दूसरे जानवरों को कितनी तकलीफ होती होगी।
उस दिन से उसने कान पकड़ लिए कि वह कभी किसी को नहीं सताएगा।