एक राजा की बेटी थी-मंदिरा।
राजकुमारी मंदिरा को सुख-सुविधाओं की इतनी आदत हो गई थी कि वह उनके बिना रह ही नहीं पाती थी।
वह अपने पिता की बहुत लाडली थी।
जब वह बड़ी हुई तो उसके पिता उसके लिए एक अच्छा वर ढूँढ़ने लगे।
एक दिन एक युवक राजा के पास आया।
उसने राजकुमारी का हाथ राजा से माँगा।
राजा ने बहुत देर तक उस युवक से बात की।
उसके बाद वह उस युवक से राजकुमारी का विवाह करने के लिए तैयार हो गए।
लेकिन जब राजकुमारी को पता चला कि जिस युवक से उसका विवाह होने वाला है, वह कोई राजा या राजकुमार नहीं है तो उसने विवाह करने से मना कर दिया।
लेकिन राजा भी आखिर उसके पिता थे।
अंत में राजा की आज्ञा उसे माननी ही पड़ी।
विवाह के बाद दूल्हा और दुल्हन एक गाड़ी में बैठे और अपने घर में रहने चले गए। उनकी गाडी सुअरों के एक बाड़े के आगे रुकौ।
वहीं एक झोंपड़ी भी थी। युवक ने कहा, 'हमारा घर आ गया है, आओ अंदर चलें।'
राजकुमारी को यह देखकर बेहद आश्चर्य हुआ कि उसके पिता ने उसका विवाह एक सुअर पालनेवाले से कैसे कर दिया।
लेकिन वह अब कुछ भी नहीं कर सकती थी।
उसके पति ने उससे कहा, ' अब यही तुम्हारा घर हे।
कल से तुम मेरे काम में मेरी मदद करना।'
राजकुमारी को यह सोचकर भी घिन आती थी कि उसके चारों ओर सुअर घूम रहे हैं।
जबकि उसका पति आराम से वहाँ रह रहा था।
धीरे-धीरे राजकुमारी को सुअरों के बीच रहने की आदत पड़ने लगी। वह अपने पति की मदद भी करने लगी।
कुछ महीने बीत गए। अब तक राजकुमारी घर का सारा काम अपने आप करना सीख गई थी।
बल्कि उसे यह सब करने में मज़ा आने लगा था।
एक दिन अचानक उसका पति उससे बिना कुछ कहे, कहीं चला गया।
काफी देर तक वह वापिस ही नहीं आया।
फिर वहाँ एक बग्घी आई।
देखने में यह किसी राजा की बग्घी लगती थी।
बग्घी के कोचवान ने राजकुमारी मंदिरा से कहा, ' आपको हमारे राजा साहब ने बुलाया है। आइए, मेरे साथ चलिए।' मंदिरा अब कोई' राजकुमारी नहीं बल्कि एक साधारण सुअरवाली थी।
वह यह सोचकर डर रही थी कि राजा ने उसे क्यों बुलाया है। शायद मेरे पति से कोई गूलती हो गई है।
' उसने सोचा। कोचवान मंदिरा को एक राजमहल में ले आया।
यह उस राज्य के राजा का महल था।
उसे राजा के सामने बुलाया गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि उससे क्या भूल हो गई है।
उसने हिम्मत करके राजा की ओर देखा। वह पूछने ही वाली थी कि उसे यहाँ क्यों बुलाया गया है।
तभी उसे लगा कि उसने राजा को पहले कहीं देखा है।
ध्यान से देखने पर उसे पता चला कि सामने राजसिंहासन पर और कोई नहीं, उसका पति था।
उसे इस तरह राजा के रूप 'में देखकर मंदिरा भी उसे तुरंत पहचान नहीं पाई।
उसे सम्मान के साथ राजा के बराबर रखे हुए सिंहासन पर बैठाया गया।
उसका पति वास्तव में उस राज्य का राजा था।
राजकुमारी मंदिरा अब पहले जैसी ज़िद्दी और घमंडी नहीं रही थी। इसीलिए वह अब रानी बनने के लायक थी।
अब वह समझ गई थी कोई भी काम छोटा या गंदा नहीं होता।
यदि आप चाहें तो हर परिस्थिति में खुश रह सकते हें।