एक घोड़ा घास चर रहा था।
तभी उसने देखा कि एक लोमडी उसकी ओर आ रही थी।
वह लोमडी का स्वभाव जानता था।
वह जानता था कि लोमड़ी बहुत चालाक है।
इधर लोमड़ी भी यह बात जानती थी कि घोड़े बहुत ताकतवर होते हैं।
इसलिए वह भी घोडे को बातों में उलझाने का तरीका सोच रही थी।
घोड़ा लोमड़ी को देखकर लँगड़ा-लँगड़ाकर चलने लगा।
लोमडी ने पूछा कि उसे क्या हुआ है ?
तब घोड़े ने कहा, 'ऐसा लगता है कि मेरे पैर में काँठ चुभ गया है।
इसीलिए बहुत दर्द हो रहा है और चलने में मुश्किल भी: हो रही है।'
लोमडी ने कहा, “मैंने एक डॉक्टर से इलाज करना सीखा है।
तुम्हें काफ़ी तकलीफ हो रही होगी। लाओ मुझे दिखाओ अपना पैर।'
ऐसा कहकर लोमडी चालाकी से घोड़े को पैर से पकड़ने के लिए झुकी।
उसने सोचा कि अगर उसने घोड़े को एक बार गिरा दिया तो फिर उस पर काबू पाना आसान हो जाएगा।
लेकिन घोड़ा उससे ज़्यादा समझदार था।
जैसे ही लोमडी ने उसका पैर पकड्ना चाहा, घोड़े ने उसे एक जोरदार लात मारी।
लोमडी हवा में उड़कर दूर जा गिरी।
अब घोड़े की जगह बेचारी लोमडी लँगड़ा रही थी और सोच रही थी-मेरी आदत है चालाकी करना और घोडे की आदत है लात मारना।
दोनों अपनी-अपनी आदत से मजबूर हैं।
ऐसी आदतें जो कठिन समय॑ में काम आ जाएँ क्या बुरी हैं ?
क्यों भाई मानते हो या नहीं ?
लेकिन ऐसी आदतें जो दूसरों को तकलीफ पहुँचाएँ .... कभी मत सीखना!