सकारात्मक सोच या सकारात्मकता स्वयं को नियमित रूप से कराया जाने वाला सुखद भावनाओं का अनुभव है। इनमें से कुछ प्रमुख भावनाएं ये हैं प्रसन्नता या खुशी, आशा, आभार या कृतज्ञता, अनुराग या रुचि, शांतचित्तता, शुद्धता, गर्व, आनंद, प्रेम, अंतःप्रेरणा और आस्था या आदर।
सकारात्मक सोच को हम ऐसी मानसिक प्रवृत्ति भी कह सकते हैं, जिसके तहत हम अच्छे और अनुकूल परिणामों की उम्मीद करते हैं ।
सकारात्मक सोच की एक और परिभाषा यह है कि यह ऐसे विचारों को उत्पन्न करने की प्रक्रिया है, जो वास्तव में ऊर्जा को उत्पन्न और रूपांतरित करती है। एक सकारात्मक सोच वाला मस्तिष्क किसी भी परिस्थिति में स्वस्थ और प्रसन्नता देने वाले अंत की प्रतीक्षा करता है।यह तय है कि हम अपने जीवन में नकारात्मकता को पूरी तरह से अलग नहीं कर सकते हैं। जीवन में बुरी चीजें भी होती रहती हैं। असल बात यह है कि हम अपने विचारों में नकारात्मकता के मुकाबले सकारात्मकता को कितनी ज्यादा जगह दे पाते हैं।
इस संबंध में किए गए शोधों के अनुसार सकारात्मकता का लाभ आपको तभी मिलेगा, जब आप सकारात्मकता और नकारात्मकता के बीच में कम-से-कम 3-1 का अनुपात रखेंगे। इसका अर्थ यह हुआ कि यदि हमारे अंदर एक नकारात्मक भाव आता है तो उसकी काट के लिए कम-से-कम तीन नकारात्मकता को पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता, लेकिन सकारात्मकता को बढ़ाकर इसे निष्क्रिय किया जा सकता है।
सकारात्मकता का लाभ आपको तभी मिलेगा, जब आप सकारात्मकता और नकारात्मकता के बीच में कम-से-कम 3-1 का अनुपात रखेंगे। सकारात्मक भाव उत्पन्न होने चाहिए। सामान्य जीवन में हम दोनों के अनुपात का सही-सही मापन तो नहीं कर सकते, लेकिन हमें यह जरूर सुनिश्चित करना होगा कि हम स्वयं को सकारात्मक भावनाओं का अनुभव ज्यादा-से-ज्यादा कराते रहें।
यह इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि सामान्य रूप से हम मनुष्यों का झुकाव नकारात्मकता की तरफ ज्यादा होता है। हमें नकारात्मक भावनाएं सकारात्मक भावनाओं से ज्यादा तीव्रता से महसूस होती हैं। नकारात्मक कहानियों की तरफ हमारा ध्यान ज्यादा जाता है। इसी वजह से तो पूरी दुनिया में नकारात्मक खबरें सबसे ज्यादा लोगों का ध्यान अपनी तरफ खींचती हैं। नकारात्मक घटनाएं हमें आसानी से याद भी हो जाती हैं और लंबे समय तक याद भी रहती हैं।
नकारात्मकता के इतने प्रभावशाली होने के कारण ही सकारात्मकता के लिए हमारी तरफ से प्रयास करने की जरूरत होती है। हमें प्रयास करके सकारात्मकता का स्तर बढ़ाना होता है। केवल एक बार से कुछ नहीं होगा। हमें इसके लिए लगातार प्रयास करना होगा, वरना नकारात्मकता तुरंत निकट आ जाती है।
नकारात्मकता सोच और विचार बहुत प्रभावी होती है, इसे हमेशा खुद से दूर रखे और इस सोच को हराना जरूरी है।
सुखद बात यह है कि नकारात्मकता कितनी भी प्रभावशाली क्यों न हो, दिनभर में छोटी-छोटी गतिविधियों या किसी अच्छे काम से ही इसका पारा बहुत नीचे गिर सकता है और सकारात्मकता का पारा बहुत ऊपर उठ सकता है, लेकिन इसके लिए थोड़ा प्रयास तो करना ही होगा। ...तो आइए रोजाना थोड़ा प्रयास करें और अपने आपको, अपनी आत्मा को अच्छी भावनाओं का नियमित अनुभव कराएं।
सकारात्मक सोच वाला मस्तिष्क किसी भी परिस्थिति में अच्छे अंत की प्रतीक्षा करता है।