यह वाक्य कई जरूरी जगहों पर लिखा होता है । रेलवे स्टेशनों पर, आम दफ्तरों में लिखा होता है । कर्म करना इन्सान का पहला धर्म है ।
कई लोग कर्म को भाग्य रेखा मानते हैं । वो कर्म दूसरा है । यह कर्म गीता वाला कर्म है । गीता में लिखा है - " कर्म ही श्रेष्ठ है, कर्म कर फल की इच्छा मत कर " ।
कबीर ने अपनी वाणी में कर्म योग पर ही अपना तर्क दिया है । जो आदमी स्टेशन की ओर चल देता है उसको तो गाड़ी मिल सकती है ।
जो चला ही नहीं उसको तो मिल ही नहीं सकती । आर्यसमाज का भी यही नियम है ।
कर्म करना इन्सान का पहला लक्ष्य होना चाहिए । तकरीबन सब धर्म-कर्म की व्याख्या करते हैं ।
अपना-अपना ढंग है । आज तो विज्ञान का युग है । करने को ही कर्म कहते हैं ।
कहीं पर दुनिया में ऐसा नहीं लिखा है कि भाग्य के भरोसे रहो ।
कर्म करने से बड़ा आनंद मिलता है । दिशा सही हो तो और भी आनंद आता है ।
कर्म करने का तरीका भी होता है । कर्म करने से पहले ज्ञान का होना जरूरी है । फिर उसको मानना जरूरी होता है । फिर करना जरूरी होता है ।
कर्म तो सभी करते हैं । कर्म अगर ज्ञान को जानकर किया जाय तो बहुत तरक्की होती है ।
कई लोग कर्म तो करते हैं, मगर कभी-कभी दिशा हीन हो जाते हैं । उनका कर्म ज्यादा सफल नहीं होता । पक्के इरादे से किया कर्म ही ज्यादा
कारगर होता है । कई लोगों की शिकायत रहती है कि हम कर्म तो करते हैं मगर कामयाबी नहीं मिलती । उनकी दिशा में कोई खराबी जरूर होगी । सब को अच्छा गुरु मिलना आसान काम नहीं है । सुखी रहने के लिए अच्छे गुरु की तलाश जरूरी है । ऐसा ही नियम है । अच्छा साहित्य भी काम आता है ।